उपरोक्त तस्वीर उत्तर केरल कन्नूर जिले के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन के कार्यकर्ता की है जो जिले की की सी.पी.एम. शाखा के हत्थे चढ़ गया . मैंने इसे एवं अन्य तस्वीरों को http://pramendra.blogspot.com/ पर देखा http://ckshindu.blogspot.com/2008/03/blog-post_19.html पर भी इसका उल्लेख है.
ये कटे सर की ग़ज़ल है जो कट तो गया पर झुका न होगा वैसे आजकल बेसरों का जमाना है फूलों और तितलियों के रंगों के फिदायीन जख्मों का लुत्फ़ क्या जाने. वे इसकी तफ़्तीश में लगे हैं ये सर असली है या नकली और हम हैं कि रात भर सो न सके और खुद में महसूस कर रहे हैं पूरी शिद्दत के साथ.
ग़ज़ल
काट कर सर मेरा मुस्कराते हैं वे.
दुश्मनी इस तरह से निभाते हैं वे.
कोई सर न उठाये कभी भूल कर,
बीच चौराहे उसको सजाते हैं वे.
कोई सीखे हुनर उनके हाथों से अब,
ख़ास कारीगरी अब दिखाते हैं वे.
हुक्मरानों की साज़िश जरा देखिये,
ज़ुल्म की पीठ को थप-थपाते हैं वे.
कातिलों के भी कांधे पे है एक सर,
इस हकीकत को क्यों भूल जाते हैं वे.
अब रंगों में कहाँ रह गया है असर,
खून की देखो होली मनाते हैं वे.
ये कटे सर की ग़ज़ल है जो कट तो गया पर झुका न होगा वैसे आजकल बेसरों का जमाना है फूलों और तितलियों के रंगों के फिदायीन जख्मों का लुत्फ़ क्या जाने. वे इसकी तफ़्तीश में लगे हैं ये सर असली है या नकली और हम हैं कि रात भर सो न सके और खुद में महसूस कर रहे हैं पूरी शिद्दत के साथ.
ग़ज़ल
काट कर सर मेरा मुस्कराते हैं वे.
दुश्मनी इस तरह से निभाते हैं वे.
कोई सर न उठाये कभी भूल कर,
बीच चौराहे उसको सजाते हैं वे.
कोई सीखे हुनर उनके हाथों से अब,
ख़ास कारीगरी अब दिखाते हैं वे.
हुक्मरानों की साज़िश जरा देखिये,
ज़ुल्म की पीठ को थप-थपाते हैं वे.
कातिलों के भी कांधे पे है एक सर,
इस हकीकत को क्यों भूल जाते हैं वे.
अब रंगों में कहाँ रह गया है असर,
खून की देखो होली मनाते हैं वे.
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जवाब देंहटाएंदर्दनाक...देखकर मन पीड़ा से भर गया...
जवाब देंहटाएंकातिलों के भी कांधे पे है एक सर,
जवाब देंहटाएंइस हकीकत को क्यों भूल जाते हैं वे.
अब रंगों में कहाँ रह गया है असर,
खून की देखो होली मनाते हैं वे.
samaj ki sahi tasveer vyakat ki hai aapne ....insaniyat kis rah pe hai ??
ठाकुर साहब,क्या आप बताएंगे कि इस ज्वालामुखी के ईंधन का स्रोत क्या है जो आपके भीतर सुलग रहा है? बस आपसे ही विचारने का साहस है कि दादा क्या सुलगते रहना ही हम जैसों की नियति है और ऐसे ही एक दिन डिलीट हो जाएंगे?पता नहीं साला आग के साथ षंढत्त्व का संक्रमण किधर से हो गया है?
जवाब देंहटाएंडा.रूपेश श्रीवास्तव
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जवाब देंहटाएंडॉ.रुपेशजी आपने मुझमें सुलगते ज्वालामुखी के ईधन का स्त्रोत पूछा है हरजीतसिंह की ग़ज़ल की पंक्तियाँ याद आ गयीं-
जवाब देंहटाएंक्या सुनायें कहानियाँ अपनी.
पेड़ अपने हैं आँधियां अपनी.
आपने आग के साथ षंढत्व के संक्रमण की बात की
दिनकरजी ने अपनी कृति उर्वशी में इस सवाल का जबाब उर्वशी से दिलवाया है-
राजा पुरू जब उर्वशी से कहता हैं
चाहता देवत्व पर
इस आग को धर दूँ कहां पर
वासनाओं को विसर्जित
व्योम में कर दूँ कहाँ पर.
उर्वशी कहती है-
जब तक ये पावक शेष
तभी तक सिंधु समादर करता है.
अपना समस्त मणि रत्नकोश
चरणों मे लाकर धरता है.
पथ नहीं रोकते सिहं
राह देती है सघन अरण्यानी.
तब तक ही शीष झुकाते हैx
सामने प्रांशु पर्वत मानी.
सुरपति भी रहता सावधान
बढ़कर तुझको अपनाने को.
अप्सरा स्वर्ग से आती हैं
अधरों का चुंबन पाने को.
आप जिसे षंढत्व के संक्रमण की संज्ञा दे रहे है इसे कामदेव कहा गया है.इसके सही और ग़लत दोनों रूप है.
आप दिनकर की उर्वशी ज़रूर पढियें.
रही हमारे तुम्हारे यूं ही डिलीट होने की बात. सो वैसा नहीं है-
एक ताज़ा ग़ज़ल के के कुछ शेर आपको नज़र कर रहा हूँ.
ग़ज़ल
धूल दुश्मन को हम चटा देंगे.
आसमां से जमी पे ला देंगे.
जान पर खेलकर के दीवाने,
उसके टावर सभी उड़ा देंगे.
आमीन.आप मायूसी की बात मत किया कीजे.