ये तस्वीर एन.सी.सी.युनिफोर्म में केप्टन सुभाष भदौरिया यानि हमारी है और ये ग़ज़ल बुज़दिल दहशत गर्दों के नाम जो मासूम बेवस लोगों को सोफ्ट टार्गेट मान कर अपनी बुज़दिली से तआरुफ़ करा रहे हैं।
हुकूमत की नज़र में इन आम लोगों की कीमत कीड़े मकूड़े से ज़्यादा नहीं है इससे उन्हें कुछ हांसिल होने वाला नहीं है ।
ग़ज़ल
ये करिश्मां भी हम दिखा देंगे.
राणां सांगा के हैं हमीं वंशज ,
ज़ख्म अपने तो मुसकरा देंगे.
एक इक का जबाब सौ-सौ से,
ये समझ मत कि हम भुला देंगे.
उनकी शामत भी आयेगी इक दिन,
जो तुझे घर में आसरा देंगे.
जान पर खेल कर के दीवाने,
तेरे टॉवर सभी उड़ा देंगे.
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.ता.21-05-08 समय-9-05AM
उनकी शामत भी आयेगी इक दिन,
जवाब देंहटाएंजो तुझे घर में आसरा देंगे.
जान पर खेल कर के दीवाने,
तेरे टॉवर सभी उड़ा देंगे.
सुभाष जी
बहुत खूब.आप का गुस्सा एक एक लफ्ज़ में नज़र आ रहा है. टॉवर उड़ाना कोई मुश्किल काम नहीं लेकिन उसके लिए हुक्मरानों से इजाज़त लेना ज़रूर मुश्किल है. जो चाहते हैं ये खेल यूँ ही चलता रहे. बेगुनाह हर दौर में ऐसे ही मारे जाते रहें हैं. रामायण में जो निरीह बेज़ुबान वानर मरे होंगे उनका राम या रावण से क्या लेना देना था बताईये?
नीरज
भदौरिया जी,
जवाब देंहटाएंआपका आक्रोश, रचना के तेवर प्रशंसनीय हैं। बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
समझ जरा कम है इसलिये समझ नहीं पाया कौन से टावर दीवाने उडा देगें
जवाब देंहटाएंउनकी शामत भी आयेगी इक दिन,
जवाब देंहटाएंजो तुझे घर में आसरा देंगे.
gahri baat badi aasani se kah di...