ये ग़ज़ल मर्हूम आरुषि के नाम पूरी शिद्दत और ख़ुलूस के साथ उसी की मुँह ज़बानी.
ग़ज़ल
तुमको हर सिम्त नज़र आऊँगी.
पापा मम्मी तुम्हें रुलाऊँगी .
तब्सिरे मौत पे हुये मेरे,
ज़िंदगी क्या थी मैं बताऊँगी.
बंद कमरों के घुप अँधेरों में,
क्या पता था की भटक जाऊँगी.
रौशनी बन गयी मेरी दुश्मन,
इस ख़ता पे ही मारी जाऊँगी.
जीते जी चाहतों को तरसी थी,
बाद मर के भी तरस जाऊँगी.
दोस्तो तुम को मिस करूँगी मैं,
अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँगी.
अपना अपना नसीब है यारो,
गीत ये ही मैं गुन-गुनाऊँगी.
चाहने वालो याद कर लेना,
मैं ख़यालो में महक जाऊँगी.
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.ता.05-06-08 समय-07-45-AM.
ग़ज़ल
तुमको हर सिम्त नज़र आऊँगी.
पापा मम्मी तुम्हें रुलाऊँगी .
तब्सिरे मौत पे हुये मेरे,
ज़िंदगी क्या थी मैं बताऊँगी.
बंद कमरों के घुप अँधेरों में,
क्या पता था की भटक जाऊँगी.
रौशनी बन गयी मेरी दुश्मन,
इस ख़ता पे ही मारी जाऊँगी.
जीते जी चाहतों को तरसी थी,
बाद मर के भी तरस जाऊँगी.
दोस्तो तुम को मिस करूँगी मैं,
अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँगी.
अपना अपना नसीब है यारो,
गीत ये ही मैं गुन-गुनाऊँगी.
चाहने वालो याद कर लेना,
मैं ख़यालो में महक जाऊँगी.
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.ता.05-06-08 समय-07-45-AM.
bahut badhiya abhivykti .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल है
जवाब देंहटाएंअशोक मधुप
उम्दा भाव।
जवाब देंहटाएंभावुक कर देने वाली रचना.
जवाब देंहटाएंarushi ko hamari bhi shradhanjali
जवाब देंहटाएंमहेन्द्रजी,मधुपजी,अबरार साहब,उड़न तश्तरी साहब
जवाब देंहटाएंऔर रचनाजी आप सबकी टिप्पणियाँ मेरे लिखने में जान डालेंगी.
पाठक का रचनाकार से दर्जा ऊँचा है इसको मैं हमेंशा तस्लीम करता हूँ वे ही उसे सवांरते और निखारते हैं.
उन की गालियाँ भी नवाजिश से कम नहीं होंती बशर्ते ईमानदारी से दी जायें.
आरुषि मुझे मेरी बेटी की तरह अज़ीज़ है. उसकी ज़हानत ही उसे लील गयी ऐसा मझे लगता है. उसकी रुह को ख़ुदा सुकून बख्शे आमीन.
bhavnayein sunder ban padii hein. badhayee...
जवाब देंहटाएंआपकी गजल के साथ सबकी टिप्पणी और साथ में आपकी भी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा। जहां तक आपकी रचना की आंतरिक जवाबदेही की बात है, अंतरे लचक गए हैं। मैं आपको प्रायः पढ़ता हूं। आपके भीतर का रचनाकार काफी कद्दावर है। मैं तो यहीं कहूंगा कि....साथी...आन दे...आन दे...
जवाब देंहटाएंमुँहफट जनाब.आपके ब्लाग पर आपको पढ़ा.आप कौन से अंतरे लचक गये बताते तो आनंद आता और ठीक कर देते तो परमानंद की प्राप्ति हो जाती.
जवाब देंहटाएंपर ओ शऊर तुम्हें होता तो यूँ हवा में बात नहीं उछालते बाक कही जाय तो मिसाल के साथ.
अब मैं खुद ही अंतरों की बात कर दूँ-
ये उर्दू की मशहूर बहर बहरे खफीफ मुसद्दक मखबून महज़ूफ है जिसके अरकान हर मिसरें में इस प्रकार हैं-
फाइलातुन मफाइलुन फेलुन.
2122 1212 22
कुछ उदाहरण देंखें-
रात भी नींद भी कहानी भी.
हाय क्या चीज हैं जवानी भी. (फिराक गोरखपुरी)
तू किसी रेल सी गुजरती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ. (दुष्यन्त कुमार)
अबे नानी की आगे ननोरे की बात कर रहे हो.बकौले मीर तकी मीर-
सारे आलम पे मैं हूँ छाया हुआ.
डॉ.सुभाष भदौरिया.
मुस्तनद है मेरा फ़र्माया हुआ.
Excellent poem! poets like you give insperation to students like us to write poems in the present millenion thank you sir. keep writing poems and inspire us
जवाब देंहटाएंfrom, Tejaswini Gajjar F.Y B.A
gujarat collage ahmedabad
kya baat hai
जवाब देंहटाएं