ये नागराज नेट के नकटों के जीजाजी है। बताओ जीजाजी का नाम क्या है।हाय कित्ते हैंडसम है। जीजाजी का एडरेस क्या है। हम बता रहे हैं आस्तीन इनका काटा पानी नहीं मांगता।आजकल इनकी खूब खातिर दारी हो रही है। सब जगह छाये हुए हैं लोगों का जीना हराम कर रक्खा है।
ग़ज़ल
सच को कह कर के मारे गये.
अपने सारे सहारे गये ।
अपने सारे सहारे गये ।
इक नज़र हम पे डाली नहीं,
सांप देखो पुकारे गये।
सांप देखो पुकारे गये।
पार ज़ालिम ने सब को किया,
बीच में हम उतारे गये.
बेबसों से न ये पूछिये,
ज़ुल्म क्या क्या गुज़ारे गये.
ज़ुल्म क्या क्या गुज़ारे गये.
चांद की आरज़ू में सुनो,
हाथ से अपने तारे गये.
हाथ से अपने तारे गये.
दूर तक रेत ही रेत है,
आँख से सब नज़ारे गये
आँख से सब नज़ारे गये
और भी वे बिगड़ते गये,
जितने भी वे सुधारे गये.
जितने भी वे सुधारे गये.
डॉ.सुभाष भदौरिया, ता.03-08-08 समय- 11.57PM
क्या सुन्दर गज़ल है
जवाब देंहटाएंबिहार में देखो ज़ल ही ज़ल है
जम्मू भी धर्म में सज़ल है
क्या सुन्दर गज़ल है
-कामोद
चांद की आरज़ू में सुनो,
जवाब देंहटाएंहाथ से अपने तारे गये.
दूर तक रेत ही रेत है,
आँख से सब नज़ारे गये
वाह वाह बहुत ख़ूब डॉ.साहेब !! यह दो अशार बहुत पसंद आए. हालात की इतनी बेहतरीन मंज़र कशी कोई आप से सीखे.
कामोदजी आपका ब्लॉग देखा बिहार के लोगों की दुर्दशा देख रहा हूँ.फिराक गोरख पुरी का शेर याद आगया.
जवाब देंहटाएंकुछ तो अपने भी ग़म थे दुनियां में,
कुछ बलायें थी आसमानी भी.
आप मेरा सही जगहों पर ध्यान खींच रहे हैं.शुक्रिया.
हैदराबादी साहब
आपकी नवाज़िश कहीं बीमार न कर दे.हिकारत, नफ़रत,गुस्सा बरदास्त कर लेता हूँ मुहब्बत संभाली नहीं जाती. ज़र्रा नवाज़ी के लिए मशकूर हूं जनाब.
यूँ ही गरीबखाने पर आते ही रहिये आमीन.