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ग़ज़ल
हम ग़ज़ल कह रहे हैं तुम्हारे लिए.
तीर तुम भी चलाओ हमारे लिए.
दावतें दे रहे बेहयाई से ख़ुद,
बाद में रोयेंगे फिर सहारे लिए.
बात फिर क्या कोई हम खरी कह गये,
ढूंढ़ते हैं हमें सब दुधारे लिए.
हों मुबारक तुम्हें हुस्न की वादियां,
क्या करेंगे इन्हें ग़म के मारे लिए.
झोपड़ी मेरी अब ख़ैर तेरी नहीं,
हाथ मे फिर रहे सब शरारे लिए.
एक हम थे कि तूफान से भिड़ गये,
लोग बैठे रहे सब किनारे लिए.
डॉ.सुभाष भदौरिया, ता.04-09-08 समय-7-05AM
हों मुबारक तुम्हें हुस्न की वादियां,
क्या करेंगे इन्हें ग़म के मारे लिए.
झोपड़ी मेरी अब ख़ैर तेरी नहीं,
हाथ मे फिर रहे सब शरारे लिए.
एक हम थे कि तूफान से भिड़ गये,
लोग बैठे रहे सब किनारे लिए.
डॉ.सुभाष भदौरिया, ता.04-09-08 समय-7-05AM
Bhadoriaji, achhi lagi aapki gazal.
जवाब देंहटाएंझोपड़ी मेरी अब ख़ैर तेरी नहीं,
जवाब देंहटाएंहाथ मे फिर रहे सब शरारे लिए.
एक हम थे कि तूफान से भिड़ गये,
लोग बैठे रहे सब किनारे लिए.
बेहतरीन....सुभाष जी आप का अंदाजे बयां तो लाजवाब है...हमेशा से ही.
नीरज
झोपड़ी मेरी अब ख़ैर तेरी नहीं,
जवाब देंहटाएंहाथ मे फिर रहे सब शरारे लिए.
झोपड़ी और शरारे जैसे अल्फाज़ के इस्तेमाल से तो आप ने इस उम्दा शेर को गोया एक मोहाविरा (proverb) बना कर रख दिया. बहुत ख़ूब.