ग़ज़ल
एक नागिन पे अपना दिल आया.
और आकर के बहुत पछताया.
शीश-ए-दिल की आरज़ू देखो,
एक पत्थर से जा के टकराया.
उसकी गलियों में सीख दे बैठे,
इस ख़ता पे ही हमको पिटवाया.
कुछ तो फितरत थी उसकी डसने की,
खूब लोगों ने उसको उकसाया.
उसकी आँखे या ज़हर के प्याले,
उसके जादू से कौन बचपाया.
रोज़ दिखलाके नित नये जल्वे,
जानिसारों को खूब भरमाया.
अपनी किस्मत में ही हिकारत थी,
जिसको चाहा उसी ने ठुकराया.
डॉ.सुभाष भदौरिया, ता.09-10-08 समय-08-55AM
एक नागिन पे अपना दिल आया.
और आकर के बहुत पछताया.
शीश-ए-दिल की आरज़ू देखो,
एक पत्थर से जा के टकराया.
उसकी गलियों में सीख दे बैठे,
इस ख़ता पे ही हमको पिटवाया.
कुछ तो फितरत थी उसकी डसने की,
खूब लोगों ने उसको उकसाया.
उसकी आँखे या ज़हर के प्याले,
उसके जादू से कौन बचपाया.
रोज़ दिखलाके नित नये जल्वे,
जानिसारों को खूब भरमाया.
अपनी किस्मत में ही हिकारत थी,
जिसको चाहा उसी ने ठुकराया.
डॉ.सुभाष भदौरिया, ता.09-10-08 समय-08-55AM
बहुत खूब...अच्छी रचना है...बधाई...
जवाब देंहटाएंWah bhadoriyaji, maza aagaya. ek sahaj saral gazal.bahut khoob.
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