ग़ज़लसोचे समझे बिना मुझको क्या लिख दिया.
उसने ख़त में मुझे बेवफ़ा लिख दिया.
लब पे इन्कार था, दिल में इक़रार था,
आँखोँ-आँखों में उसने पता लिख दिया.
उसकी ख़ुश्बू को भूले नहीं आज तक,
दिलसे हमने उसे दिलरुबा लिख दिया.
शोखियाँ ,झिड़कियाँ, और गुस्ताख़ियां,
हमने क़ातिल को अपने ख़ुदा लिख दिया.
आग थी कोई मुझको जलाती रही,
संगदिल ने मुझे दिलजला लिख दिया.
मुझको पढ़ते अगर तो कोई बात थी,
बिन पढ़े ही मेरा तब्सिरा लिख दिया.
रेड सिंगनल हमारी ही किस्मत में था,
ग़ैर को उसने सिंगनल हरा लिख दिया.
सुभाष भदौरिया, ता.04-09-08 समय-02-00PM
उसने ख़त में मुझे बेवफ़ा लिख दिया.
लब पे इन्कार था, दिल में इक़रार था,
आँखोँ-आँखों में उसने पता लिख दिया.
उसकी ख़ुश्बू को भूले नहीं आज तक,
दिलसे हमने उसे दिलरुबा लिख दिया.
शोखियाँ ,झिड़कियाँ, और गुस्ताख़ियां,
हमने क़ातिल को अपने ख़ुदा लिख दिया.
आग थी कोई मुझको जलाती रही,
संगदिल ने मुझे दिलजला लिख दिया.
मुझको पढ़ते अगर तो कोई बात थी,
बिन पढ़े ही मेरा तब्सिरा लिख दिया.
रेड सिंगनल हमारी ही किस्मत में था,
ग़ैर को उसने सिंगनल हरा लिख दिया.
सुभाष भदौरिया, ता.04-09-08 समय-02-00PM
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
जवाब देंहटाएंमुझको पढ़ते अगर तो कोई बात थी,
बिन पढ़े ही मेरा तब्सिरा लिख दिया.
रेड सिंगनल हमारी ही किस्मत में था,
ग़ैर को उसने सिंगनल हरा लिख दिया.