ग़ज़ल
जब से आये हैं वो ज़िन्दगी में.
दिल ये लगता नहीं अब किसी में.
हमसे प्यासों से कोई ये पूछे ,
उम्र कैसे कटी तशनगी में.
मौत पानी की लिक्खी थी मेरी,
मैं तो डूबा हूँ गहरी नदी में.
अय अंधेरो तुम्ही हाथ थामो,
मुझको धोखा हुआ रोशनी में
ज़िंदगी तुझ को लाऊँ कहाँ से ?
देख आये हैं वो आखिरी में.
लाश से वो चिपट कर के बोले,
जान दे बैठे तुम दिललगी में.
मुझको मरकर मज़ा आगया है,
आज रोता है वो चांदनी में.
सुभाष भदौरिया, ता.09-10-08 समय-08-45PM
जब से आये हैं वो ज़िन्दगी में.
दिल ये लगता नहीं अब किसी में.
हमसे प्यासों से कोई ये पूछे ,
उम्र कैसे कटी तशनगी में.
मौत पानी की लिक्खी थी मेरी,
मैं तो डूबा हूँ गहरी नदी में.
अय अंधेरो तुम्ही हाथ थामो,
मुझको धोखा हुआ रोशनी में
ज़िंदगी तुझ को लाऊँ कहाँ से ?
देख आये हैं वो आखिरी में.
लाश से वो चिपट कर के बोले,
जान दे बैठे तुम दिललगी में.
मुझको मरकर मज़ा आगया है,
आज रोता है वो चांदनी में.
सुभाष भदौरिया, ता.09-10-08 समय-08-45PM
Achhi rachna. Lekhan ka anubhav saf jhalakta hai.Good.
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