गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

चूतिये देश क्या संभालेंगे.

ग़ज़ल
तुमको, हम सब को बेंच डालेंगे.
चूतिये देश क्या संभालेंगे .
आग चहुंओर है लगी देखो,
बैठ ऐ.सी. में सब मज़ा लेंगे.
लोग मरते हैं मरें उनको क्या,
मसखरे घर में मुँह छिपा लेंगे.
उनका ऐलान तो ज़रा देखो,
आस्तीनो में सांप पालेंगे.
हाथ अपने अगर जो आये तो,
हम भी फिर हसरतें निकालेंगे.
ख़ैर अपनी मनायें वो सर की,
मेरी पगड़ी को जो उछालेंगे.
आप फूलों से ही निभाते हैं,
हम तो कांटो से भी निभालेंगे.
डॉ.सुभाष भदौरिया, ता.09-10-08 समय-10-40PM











12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी गज़ल तो अच्छी है . पर चूतिए जैसे शब्दों का प्रयोग इसकी गरिमा को कम कर रहा है.

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  2. बहुत सही कहा आपने।दशहरे की बधाई आपको।

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  3. डा० साहब,

    आप फूलों से ही निभाते हैं,
    हम तो कांटो से भी निभालेंगे.

    बहुत अच्छी हैं ये पंक्तियाँ। रिजवाँ वास्ती साहब कहते हैं कि -

    खुद अक्स उलट जाये तो क्या दोष है मेरा।
    मैं वक्त आईना हूँ सच बोल रहा हूँ।।

    यूँ तो इकविता में भी आपको कई बार पढा। ब्लाग पर आज देख रहा हूँ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. 1-विवेकजी भाषा का विवेक सिखा रहे हो.
    चूतिये शब्द की व्यंजना ही इस ग़ज़ल की जान है.मैंने जान बूझ कर इस शब्द प्रयोग किया है.
    अल्फ़ाज़ की कमी नही है ज्ञानीराज.
    आप स्वप्नलोक में विचरण करने वाले देव पुरुष है आपकी भाषा मधुराधिपते मधुरम मधुरमवाली है.
    अन्य दूसरे टिप्पणी देवताओंकी की तरह तितलियों और फूलों की खुश्बू लो और वाह वाह बहुत अच्छी कविता लिखती हैं आप का राग आलापो.
    आप रास्ता भूल गये हैं महाशय.ये यथार्थ की सख्त जमीन है जहाँ आम आदमी अपनी पीड़ा बेबसी,घुटन को यो ही व्यक्त कर रहा है.मेरे अशआर उन्हीं बेज़बानो का बयान हैं.

    बकौले मीरतकी मीर-
    सारे आल

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  5. 1-विवेकजी भाषा का विवेक सिखा रहे हो.
    चूतिये शब्द की व्यंजना ही इस ग़ज़ल की जान है.मैंने जान बूझ कर इस शब्द प्रयोग किया है.
    अल्फ़ाज़ की कमी नही है ज्ञानीराज.
    आप स्वप्नलोक में विचरण करने वाले देव पुरुष है आपकी भाषा मधुराधिपते मधुरम मधुरमवाली है.
    अन्य दूसरे टिप्पणी देवताओंकी की तरह तितलियों और फूलों की खुश्बू लो और वाह वाह बहुत अच्छी कविता लिखती हैं आप का राग आलापो.
    आप रास्ता भूल गये हैं महाशय.ये यथार्थ की सख्त जमीन है जहाँ आम आदमी अपनी पीड़ा बेबसी,घुटन को यो ही व्यक्त कर रहा है.मेरे अशआर उन्हीं बेज़बानो का बयान हैं.

    बकौले मीरतकी मीर-
    सारे आलम पे हूँ मैं छाया हुआ.
    मुस्तनद है मेरा फ़्रर्माया हुआ.

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  6. महाशक्तिजी आपके ब्लॉग को देखा आप हम ख़याल हम ज़बान नज़र आते हैं. तभी दिल की गहराइयों से पुकार उठे बहुत खूब क्या कहना.
    आपके ये जुमले मेरे लेखन को और धारदार बनायेंगे.धन्यवाद श्रीमान.

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  7. अनिलजी आप बहुत सही कह कर हौसला बढ़ा रहे हैं साहब. क्या करे मज़बूर है इस तरह लिखने के लिए जानते हैं क्यों -
    न समझेंगे वो कोई बात अब हल्के इशारों से.
    दशहरे पर रावणों को जला तो नहीं सकते सो गाली देकर काम चला रहे है.
    आपको भी दशहरे के पर्व की शुभकामनायें.

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  8. शयामल सुमनजी
    जान पहिचाना नाम है ईकविता को छोड़ने के बाद भाषा में काफी परिवर्तन आया है सो बर्दास्त तो करना ही पड़ेगा.
    आपके ब्लाग सर सरी नज़र से देखा बड़े प्यारे गीत और ग़जलें लिख रहे हो भैया.देखना यहाँ चोरी चपाटी का खतरा है.मोबाइल पर बात होगी.
    ईकविता से हमार रिश्ता रूहानी रहा है तुम आये तो बड़ा अच्छा लगा. दूसरे कैसे है क्या कभी हमें कोई याद करता है खलिशजी के मेल आये थे.
    पर यार हमारा तो मिजाज़ ही कुछ ऐसै है क्या करें-
    किसी रहीश की महफिल का जिक्र क्या है मीर,
    ख़ुदा के घर भी न जायेंगे बन बुलाये हुए.
    आप ने ईकविता की याद दिलादी.

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  9. सुभाष जी, माना की चूतिये शब्द से काफी गहरी चोट लगती है... पर सिर्फ़ ६-८ इंच गहरी... जिन महानुभावो के लिए आप ने इस शब्द का प्रयोग किया है, वे इस से भी अधिक गहरी चोट दी जाने की योग्यता अपने दुराचरण के चलते प्राप्त कर चुके हैं... पुरुषार्थहीन इन लोगो के का मर्म जागृत हो सके ऐसा विशेषण अगली कविता में अवश्य प्रयुक्त करें.

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  10. आनंद निर्मलजी आप मेरे लक्षभेद को समझ रहे हैं ये दृष्टि हर एक के पास नहीं होती.
    हमारे अहमदाबाद के मश्हूर हिन्दी कवि और ग़ज़लकार सुल्तान अहमद का शेर याद आगया-

    इसी लिए दिखा रहे थे सुअरों को आइना,
    कि सूली भी मिली तो चढ़ जायेंगे की खुशी केसाथ.

    भाषा के पाखंडी इसे नहीं समझेंगे हम उनसे मुख़ातिब भी कहाँ हैं?
    हिन्दी ग़ज़ल कार-दुश्यन्तकुमार कहते हैं-

    नालियों में हयात देखी है,
    गालियों में बड़ा असर देखा.

    हमारी दूसरी ग़ज़लों पर ज्ञानी मौन रहते हैं.
    एक शब्द को लेकर कैसे बौखला रहे हैं ये उनके रिश्तेदार तो नहीं ज़रा रिसर्च कराइये.
    खैर हम आपकी फ़र्माइश ज़ल्द पूरी करेंगे.
    आपकी नवाज़िश ने मालामाल कर दिया साहब. मुहब्बत बनाये रखिये आमीन.

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  11. Dr.Sahab aapne jivant kavita likhi hai...
    Badhai ...

    http://dev-poetry.blogspot.com

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