ग़ज़ल
तुम तपिश दिल की बढ़ने तो दो,बर्फ पिघलेगी ही एक दिन.
तोड़कर सारी जंजीरें वो घर से निकलेगी ही एक दिन.
शौक़ जलने का परवाने को होगया आजकल इस तरह.
लाख कोशिश करे कोई भी,शम्मा मचलेगी ही एक दिन.
अश्क बहते नहीं उम्र भर ,ग़म न कर अय मेरे हमसफ़र.
बात बिगड़ी है जो आजकल बात सँभलेगी ही एक दिन.
तू न फूलों पे पहरे लगा ,मान ले बात वो मेहरबां.
आँधियाँ चाहे जैसी चले, खुश्बू फैलेगी ही एक दिन.
तीरगी को पुरस्कार है, रौशनी ही गुनहगार है.
ज़ालिमों की जो सरकार है.वो तो बदलेगी ही एक दिन
तुम तपिश दिल की बढ़ने तो दो,बर्फ पिघलेगी ही एक दिन.
तोड़कर सारी जंजीरें वो घर से निकलेगी ही एक दिन.
शौक़ जलने का परवाने को होगया आजकल इस तरह.
लाख कोशिश करे कोई भी,शम्मा मचलेगी ही एक दिन.
अश्क बहते नहीं उम्र भर ,ग़म न कर अय मेरे हमसफ़र.
बात बिगड़ी है जो आजकल बात सँभलेगी ही एक दिन.
तू न फूलों पे पहरे लगा ,मान ले बात वो मेहरबां.
आँधियाँ चाहे जैसी चले, खुश्बू फैलेगी ही एक दिन.
तीरगी को पुरस्कार है, रौशनी ही गुनहगार है.
ज़ालिमों की जो सरकार है.वो तो बदलेगी ही एक दिन
उपरोक्त तस्वीर एन.सी.सी.युनिफोरम में हमारी है जो हमारे मिज़ाज का बयां कर रही है।
हमारे दुश्मनों और जलने वालों को आगाह किया जाता है वे अपनी हद में रहे हमारी शान में की गयी किसी भी गुस्ताख़ी का फ़ौरन जवाब दिया जायेगा.
ता.03-11-08 समय- 07-20PM
ता.03-11-08 समय- 07-20PM
बेहतरीन ग़ज़ल..आशा और विश्वाश से भरी हुई...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
नीरजजी ज़रा हमें देखो तो सही-
जवाब देंहटाएंकौन कहता है सितारों को छू नहीं सकते.
हम सितारों को कंधों पे लिये फिरते हैं.
हमें तोड़ना आसान नहीं बहुत सख्तज़ां है जैसा जीते हैं वही लिखते हैं तल्खियां तो इतनी हैं कि क्या कहें.यार तुम कैसे बरदास्त कर लेते हो हमें.
तुम्हारी ग़ज़लों पर इसलिए टिप्पणी नहीं करते कहीं तुम्हें चोट न लग जायें.तुम नाज़ुक मिज़ाज हो कमसिन हो वल्लाह शीरी ज़बान भी है तुम्हारी.
हाय ये अदायें तो ज़ोहराजबीनों में भी कहाँ मिलती हैं आजकल कहीं तुम्हारी मुहब्बत हमें बीमार न कर दे.
'तू न फूलों पे……'
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
अच्छे शेर कहे हैं आपने भदौरिया जी,
जवाब देंहटाएंमैं भी कहना सीख रहा हूं...
बहरहाल,,
कभी समय निकाल कर आइये..
स्वागत है बड़े भाई..