ग़ज़लगुंबद के कबूतर क्या जाने, घर घाट पे क्या-क्या ख़तरे हैं.
विस्फोट सुनाई क्या देंगें, जो लोग जनम के बहरे हैं.
विस्फोट सुनाई क्या देंगें, जो लोग जनम के बहरे हैं.
ओढ़े हैं शराफ़त का चोला, चुपचाप निगलते मछली को,
नदिया ने कहा ये रो-रो के बगले क्यों देते पहरे हैं. .
चुंबन, मर्दन,चितवन,छम-छम, कविता में यही गायें हरदम,
अपनी ही हैं रम्भा में खोये, कहने को ख़्वाब सुनहरे हैं.
क्या बात कही कविवर वाह-वाह , चमचे कह गद-गद होते हैं,
हम देख रहे हैं मुद्दत से, वे एक जगह ही ठहरे हैं
उड़ते हैं हवाओं में हरदम, आयें जो ज़मीं पर जानेंगे,
पाँवों में हमारे छाले क्यों ? क्यों ज़ख़्म ये अपने गहरे हैं ?
आईना ज़रा सा दिखलाओ सुअरों को करें गुस्सा हम पर,
शुहरत की बुलंदी पे देखो झंडे उनके बस फहरे हैं,
नदिया ने कहा ये रो-रो के बगले क्यों देते पहरे हैं. .
चुंबन, मर्दन,चितवन,छम-छम, कविता में यही गायें हरदम,
अपनी ही हैं रम्भा में खोये, कहने को ख़्वाब सुनहरे हैं.
क्या बात कही कविवर वाह-वाह , चमचे कह गद-गद होते हैं,
हम देख रहे हैं मुद्दत से, वे एक जगह ही ठहरे हैं
उड़ते हैं हवाओं में हरदम, आयें जो ज़मीं पर जानेंगे,
पाँवों में हमारे छाले क्यों ? क्यों ज़ख़्म ये अपने गहरे हैं ?
आईना ज़रा सा दिखलाओ सुअरों को करें गुस्सा हम पर,
शुहरत की बुलंदी पे देखो झंडे उनके बस फहरे हैं,
उपरोक्त तस्वीर महाकवि की है जो हमें बड़ी मुश्किल से उपलब्ध हुई है.शीघ्र ही सचित्र दूसरों का भी इलाज़ किया जायेगा. आमीन.
समय-10-50PM
समय-10-50PM
अच्छा कमेन्ट है.. बगुला रूपी सभ्य लोगों पर..
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब गजल ! बहुत शुभकामनाएं डाक्टर साहब !
जवाब देंहटाएं1-भाई संदीप आपके ब्लॉग पे देखा बहुत ही अच्छा लिखते हो काफी संवेदना से भरे हो.कविता का थोड़ा शिल्प जान लो कमाल करोगे.गद्य पर पकड़ आपकी अच्छी है आगे बढ़ो मेरे हमख़याल यही दुआ है.
जवाब देंहटाएं2-ताऊ आप हमें डॉक्टर साहब कह कर न संबोधित करें इससे दूरियों का आभास होता है-हम
आपको उर्दू की बहुत ही मश्हूर पाकिस्तान की मर्हूम शायरा का एक शेर अर्ज़ करते हैं गौर फ़र्मायें.
बस इतनी बात थी उसने तकल्लुफ़ से बात की,
और हमने रो-रो के दुपट्टा भिगो लिया.
हमारे पास भिगोने रूमाल भी नहीं यार क्या करें.
आते जाते रहिये मेरे आका.आमीन.
'गुंबद के कबूतर…'
जवाब देंहटाएं'उड़ते हैं हवाओं में हरदम…'
कठोर व्यंग तथाकथित महानुभावों पर।
बधाई।