बुज़दिली उनकी शराफ़त क्यों है ?
मुंबई जल रही है धू-धू कर,
अब कराची ये सलामत क्यों है ?
ख़ून लोगों का बहा सड़कों पर,
अब ये लाशों पे सियासत क्यों है ?
क़ातिलों को ये हमारे तुम को,
फूल देने की ये चाहत क्यों है ?
ख़ून अपनी तो रगों में खौले,
सबके चेहरों पे हिक़ारत क्यों है ?
लें निशाने पे, जिनको लेना है,
बेगुनाहों से अदावत क्यों है ?
तुम पे ग़ुज़रे तो समझ जाओगे,
आँख में अपनी बग़ावत क्यों है ?
1-सियासत-राजनीति 2-हिक़ारत- अपमान 3-अदावत-दुश्मनी
4-बग़ावत-विद्रोह.
ता.28-11-08 समय-09-05PM
जिहाद के नाम पर ये फैलाता है जूनून
जवाब देंहटाएंमासूमों का खून बहाकर पाक को सुकून
आप भी, अपना आक्रोश व्यक्त करे
http://wehatepakistan.blogspot.com/
बिल्कुल सही कहा आपने । बहुत अच्छी गजल।
जवाब देंहटाएंइसी पर रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां प्रस्तुत है।
स्वत्व कोई छीनता हो आैर तू ,
तयाग तप से काम ले ये पाप हैं।
पूण्य है विछिन्न कर देना उसे ,
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है
यह शोक का दिन नहीं,
जवाब देंहटाएंयह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
डाक्टर साहब बहुत सटीक लिखा ! कोई भी भारतीय पिछले ५० घंटे से जितना जलील हो रहा है वो इसके पहले कभी नही हुआ ! इन कमीने नेताओं को कब सदबुद्धि आयेगी ? शहीदों को श्रद्धांजलि !
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