ग़ज़ल
वो निहत्थों पे वार करते हैं.
रोज़ ताज़ा शिकार करते हैं.
बैठे दिल्ली में नपुंसक साले,
देश को शर्मशार करते हैं.
जिनको रोना हो शौक़ से रोयें,
हम तो ज़ख्मों को प्यार करते हैं.
आ दुबारा, तू फिर से आ ज़ालिम,
हम तेरा इंतज़ार करते हैं.
मरते- मरते कहा ये लोगों ने,
जाँ वतन पे निसार करते हैं.
मौत देने तुझे,सिपाही ये,
खूँन की नदियां पार करते हैं.
बात रो-रो कही समन्दर ने,
घात अपने ही यार करते हैं।
वो निहत्थों पे वार करते हैं.
रोज़ ताज़ा शिकार करते हैं.
बैठे दिल्ली में नपुंसक साले,
देश को शर्मशार करते हैं.
जिनको रोना हो शौक़ से रोयें,
हम तो ज़ख्मों को प्यार करते हैं.
आ दुबारा, तू फिर से आ ज़ालिम,
हम तेरा इंतज़ार करते हैं.
मरते- मरते कहा ये लोगों ने,
जाँ वतन पे निसार करते हैं.
मौत देने तुझे,सिपाही ये,
खूँन की नदियां पार करते हैं.
बात रो-रो कही समन्दर ने,
घात अपने ही यार करते हैं।
उपरोक्त तस्वीर आतंकियों की है।
.29-11-08 समय-11-05
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लिखा ! रामराम !
जवाब देंहटाएंबैठे दिल्ली में नपुंसक साले,
जवाब देंहटाएंदेश को शर्मशार करते हैं.
सुभाष जी...आप का गुस्सा जायज है...सही गाली दी है...
नीरज
सही लिखा आपने , जब अपना ही सिक्का खोटा है तो क्या कहें .
जवाब देंहटाएंसटीक्।
जवाब देंहटाएंहेट पाकिस्तान साहब,ताऊजी,नीरजजी,विवेकजी,अनिलजी आप सब महानुभावों का आभारी हूँ.आप मेरे जलते हुए घर में आये.
जवाब देंहटाएंबाकी शोले की बसन्ती ढूंढ रहे होंगे या किसी सीट पे बैठे सीटी बजा रहें होंगे कोई टंकी पे चढ़ा होगा, गब्बर बसन्ती लटके झटके पे रिसर्च कर रहा होगा,साथ में महाकवि मधुरम मधुरम गा रहे होंगे चमचों की फौज वाह वाह के नारे लगा रही होगी.
ब्लाग जगत के मसखरे अपनी लीला में लगे रहते हैं और देश की ऐसी तैसी हो रही है.
अब सब ज़ाइका बदलने के लिए देश देश चिल्लायेंगे.
ग़ज़ल की पंक्तियां टाद आ रही हैं
जो वक्त की आँधी से ख़बरदार नहीं हैं.
कुछ और ही होंगे वे कलमकार नहीं है.
भाईसाहब,ब्लागिंग लोगों के लिये बकैती का मंच सा बन गया है इसलिये सब अपनी-अपनी पेले रहते हैं। घर तो हम सबका जल रहा है बस किसी को होश है और कोई सो रहा है, कोई नशे में है, कोई बेसुध है। हम सब अभी जाकर घायलों को खून देकर आये हैं। डाक्टर रूपेश सबको पकड़-पकड़ कर रक्तदान शिविर ले जा रहे है कहते जा रहे थे कि इसी बहाने से पता तो चलेगा कि आप लोगों के खून में अब तक लाली है या सफेद हो गया है.....।
जवाब देंहटाएंमुनव्वर बहिना आप और डॉ.रूपेशजी आतंकी हमलों के घायलों को खूँन देकर बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंजिन कमबख्तों के कारण देश का हाल बेहाल है मैं उन्हें खरी खोटी सुना कर अपनी भड़ास निकाल रहा हूँ वो भड़ास मेरी नहीं उन तमाम लोगों की है जो देश के कायर रखवालों से परेशान है.आप ने मेरे ब्लाग पर आकर ये साबित तर दिया है ये जलता घर मेरा ही नहीं आपका भी है और आप मुझसे ज्यादा उसकी फिकर करती हैं.
अल्लाह ये तौफ़ीक उनको भी दे जो इसे किराये का घर मानते हैं. किराये के घर को जलते देखने वाले या उसमें शामिल होने वाले नहीं जानते ये आग उन्हें भी नहीं बख्शेगी बेहतर है उसकी हिफ़ाज़त के लिए सामने आयें और मुल्क को तबाही से बचायें.आमीन.
भदौरिया जी, बहुत सही शब्दों का प्रयोग किया आपने.
जवाब देंहटाएंहमारा देश राजनीतिक ईच्छाशक्ति मे सचमुच
नपुंसक ही साबित हुआ है.
"है वक्त नहीं ये रोने का
ये वक्त है 'एक' होने का"
सही कहा है आपने। गैरत मंद होते तो ड़ूब मरे होते कहीं।
जवाब देंहटाएंशायद उन हिजड़े राजनेताओं को अब सद्बुद्धि आ जाए जो आतंकवादियों में भी वोट बैंक तलाशते रहते है।
जवाब देंहटाएंजो वक्त की आँधी से ख़बरदार नहीं हैं.
जवाब देंहटाएंकुछ और ही होंगे वे कलमकार नहीं है.
wah! kya khub kaha Subhash ji. dono gazalon ki paktiyan satik aur gahri...
आदरणीय अनिलजी,शर्माजी,अलगसाजी,एवं चंदनजी आप तमाम महानुभावों ने गरीब को अपनी नवाज़िश से मालामाल कर दिया है.मैं ग़ज़ल को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता हूँ.
जवाब देंहटाएंमुह्ब्बत के चोंचलों को जमाना गया.लहूलुहान मज़र हों, दोगले दडवों मे मुँह छिपाये बैठे हों तो क्या करें साहब कलाम में तल्खियाँ आ ही जाती हैं.
मोहतरमा हरक़ीरतजी आपके गुहावटी पिछली साल एन.सी.सी के एक ट्रेकिंग केम्प में आना हुआ था.
लेखापानी आर्मी केंप हमारा बेज़ केम्प था.
युनिफोर्म पहरकर किसी अफ़सर को ट्रेक करने की मनाई थी. हमारा अरुणाचल के आखिरी गांव मियाऊँ तक जाना हुआ था.हर क्षण हमले का भय था किसी को बाहर जाने की छूट नहीं थी. वहाँ युनिफोर्म ही सबसे बड़ी दुश्मन थी. आपकी कविताओं में विस्फोट और भय की छाया को समझता हूँ खुद भी भोगा है. पूर्व के क्षेत्र
तो हमारे हाथ से कब के गये अब पश्चिम भी सुरक्षित नहीं. देश के कर्णधार मीठी निद्रा में सोये हुए हैं.आप गरीब खाने पे तशरीफ़ लायीं मशकूर हूँ.
आते जाते रहिए आमीन.
बात रो-रो कही समुंदर ने
जवाब देंहटाएंघात अपने ही यार करते हैं
हेमंत करकरे को शहीद कर दिया गया. मुझे यह शेर पढ़ कर हेमंत करकरे की याद आ गई.
कन्धार के माफीनामा, और राजीनामा का है अंजाम मुम्बई का कोहराम ।
जवाब देंहटाएंभून दिया होता कन्धार में तो मुम्बई न आ पाते जालिम ।
हमने ही छोड़े थे ये खुंख्वार उस दिन, आज मुम्बई में कहर ढाने के लिये ।।
इतिहास में दो शर्मनाक घटनायें हैं, पहली पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुफ्ती मोहमद सईद के मंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी डॉं रूबिया सईद की रिहाई के लिये आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर खतरनाक आतंकवादीयों को रिहा करना, जिसके बाद एच.एम.टी. के जनरल मैनेजर खेड़ा की हत्या कर दी गयी । और दूसरी कन्धार विमान अपहरण काण्ड में आतंकवादीयों के सामने घुटने टेक कर रिरियाना और अति खुख्वार आतंकवादीयों को रिहा कर देना । उसी का अंजाम सामने है । तमाशा यह कि जिन्होंने इतिहास में शर्मनाक कृत्य किये वे ही आज बहादुरी का दावा कर रहे हैं, अफसोस ऐसे शर्मसार इतिहास रचने वाले नेताओं की राजनीति पर । थू है उनके कुल और खानदान पर ।
पूर्ण समर्थन आपको
जवाब देंहटाएंक्यों रिश्ता जोड़ रहे हैं। ये उस लायक भी नहीं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय हैदराबादी साहब,इंडिया न्यूज़,राठौरजी,वेदजी,आप तमाम महानुभावों को मेरी रचना छू गयी और आपने हौसला अफ़्ज़ाई की.
जवाब देंहटाएंहैदराबादी साहब आप को करकरे की ही शहादत क्यों याद आगई? उन रेल्वे प्लेटफोर्म पर मरने वाले आम मुसाफिरों की क्यों नहीं जो वेवज़ह भून दिये गये.हां वज़ह है उसकी मैं जानता हूँ शासकों की भूलों का परिणाम प्रजा को भुगतना पढ़ता है.आंतकियों की सोच को समझता हूँ.संसद के बाद पहली बार ताज,ओवेराय होटलों को निशाना बना उन्होंने गरीबों अमीरों की खाई पाट दी.
इस देश में गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं शायद अमीरों का खूँन कुछ रंग लाये.
स्टेशन,सड़कों पर मरने वाले मरा करें अमीरों और विदेशियों के लिए 60 घंटे बरबाद किये गये. पहले भी अपहरण किये गये जहाज के मुसाफिरों को बचाने के लिए आतंकियों की सेवा दामाद की तरह कर उन्हें कांधार सही सलामत भेजा गया था.इंडिया न्यूज़ के साहब उसी बदमाशी का बात कर रहे हैं.
क्यों अपहरण किये गये जहाज को आतंकियों सहित नहीं उड़ाया गया क्यों उनके जेल में बंद बाप को छोड़ने की जगह गोली नहीं मार दी गयी. क्या गरीब ही कुर्बानी देते रहेंगे.
इस देश को आज साहब,बीबी,औरगुलाम ,अधिकारी,व्यापारी,राजनेता सब मिलकर लूट रहे हैं.उनकी महफिलें इन्ही ताजों और ओबेरायों में होती है उन्हें देश हित अस्मिता के नाम पर बचाने का 60 घंटे का नाटक किया जाता है.
देश की अस्मिता की इतनी ही परवाह है तो इन आतंकियोम के पावर हाउस क्यों नही उड़ाये जाते.
मरना तो आम लोगों का है गरीबी बेरोज़गारी से मरो या आंतकियो की गोली से.
गरीब लोग आतंकियों की गोली से मरना चाहते हैं बुज़दिल देश के नेता सुरक्ष तो नहीं दे सकते 2 लाख प्रधान मंत्री कोश से देने का ऐलान कर दिया जाता है. पर ताज के अमीरो का क्या करेंगे.उनका तो होटल का बिल ही साल में इतना होता है.हमारे गुजरात में मुख्यमंत्री मोदीजी ने पाँच लाख का पैकेज दे रखा है,आतंकी हमले में मरने वालों को तुरंत चैक दे किया जाता है.नया पे कमीशन जब वे देंगे तो मरने के रेट भी बढ़ायेंगे.
देश का हर नागरिक मुंबई की घटना से इतना क्षुब्ध है कि इन दोगले नेताओं का क्या करे.इनके मुँह में थूको या कहीं और पर इन्हें शर्म नहीं.
हैदराबादी साहब आप को करकरे की ही शहादत क्यों याद आगई?
जवाब देंहटाएंनहीं, डॉ. साहब ऐसी कोई बात नहीं. मैंने अपने उर्दू ब्लॉग पर इस ग़मगीन topic पर लिखा था, अब आज आप के इस तरह याद दिलाने पर अपने हिन्दी ब्लॉग पर भी लिखा है. उम्मीद है के आप का संजीदा और इंसाफ़-पसंद तबसरा ज़रूर होगा. शुक्रिया.
हैदराबादी साहब आपका उर्दू ब्लॉग नहीं देखा था सो ऐसी बात लिख बैठा.
जवाब देंहटाएंग़जलों के दीवान तो उर्दू में बड़े चाव से पढ़ लेता हूँ गद्य को पढ़ने में स्पीड नहीं है मेरे कम्यूटर में उर्दू स्क्रिप्ट का शुमार कर रक्खा है.आप कोई लिखने का मार्ग बतायें.
साहब उर्दू न लिखने की वज़ह से काफी पिछड़ा हूँ.उर्दू के छन्द शास्त्र पर पकड़ है ऐसा लोग कहते है आप भी जानते हैं.
ख़ैर आपके हिन्दी ब्लॉग पर आपने आतंक वाद के बारे में बहुत ही सच्ची बातें कहीं हैं.मैने अपनी बात वहां कह दी है.वो तबसरा संज़ीदा और इंसाफ़ पंसन्द है या नहीं ये तो आप ही तय करेंगे.
मैं कोई मंसिफ़ नही हूँ साहब हमारी गिनती ब्लॉग जगत में पागलों में होती है.पर ऐसे पागल कि वल्लाह अगर थूक दें तो जिन्हें ब्लॉग जगत में ख़ुद पर नाज़ है उनसे बेहतर ज्ञानी पैदा हो सकते हैं.
आप जो इज़्ज़त देते हैं वो आपकी हम से मुहब्बत है नवाज़िशों के लिए मश्कूर हूँ जनाब.