ग़ज़लरेत में नाव चलाते देखो.
चूतिये लिस्ट थमाते देखो.
हो शर्म गर तो मिटा दो उनको,
चोंचले अब न सुहाते देखो.
चीखें अब भी हैं सुनाई देतीं,
मीत अब भी हैं रुलाते देखो.
गोलियां बरसती थी लोगों पे,
सब रहे गाल बजाते देखो.
आग जब भी है घरों में लगती,
मसखरे कूए खुदाते देखो.
दोगलों को वो जलाने की जगह,
मोमबत्ती वो जलाते देखो.
आग पहुँची है कहाँ घर मेरे,
बस यही ख़ैर मनाते देखो.
खूँन पानी की तरह बहता है,
शौक से हैं वो बहाते देखों।
चूतिये लिस्ट थमाते देखो.
हो शर्म गर तो मिटा दो उनको,
चोंचले अब न सुहाते देखो.
चीखें अब भी हैं सुनाई देतीं,
मीत अब भी हैं रुलाते देखो.
गोलियां बरसती थी लोगों पे,
सब रहे गाल बजाते देखो.
आग जब भी है घरों में लगती,
मसखरे कूए खुदाते देखो.
दोगलों को वो जलाने की जगह,
मोमबत्ती वो जलाते देखो.
आग पहुँची है कहाँ घर मेरे,
बस यही ख़ैर मनाते देखो.
खूँन पानी की तरह बहता है,
शौक से हैं वो बहाते देखों।
उपरोक्त तस्वीर मुंबई की मेहनतकश औरतों की है जिन्होंने आतंकी हमलों में अपना सबकुछ खो दिया।ये ग़ज़ल इन्हीं आम लोगों की बेबसी के नाम है जिस का बयाँ करने की क़ुव्वत ख़ाकसार में नहीं है.
ता.10-12-08 समय-12-10AM
ता.10-12-08 समय-12-10AM
समर्थन
जवाब देंहटाएंलिस्ट देकर यदि लोग पाओगे
जवाब देंहटाएंतो फ़िर बिरयानी ही खिलाओगे
कम है क्या मेहमान यहाँ
जो लिस्ट से और बुलाओगे
भाईसाहब सूखे हुए आंसुओं के साथ सहमति है गुस्सा है मुट्ठियां भिंची हैं बस गालियां निकल रही हैं
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