ग़ज़ल
बेचे हैं वतन को किस्तों में, सोये हैं वतन के रखवाले.
इससे तो अँधेरे बेहतर थे, डसते हैं हमें ये उजियाले .
है कौन निशाने पर अब की, शामत ये किस की आयी है ?
निकले हैं मिशन पर अब फिर से, देखो तो ज़रा अल्लाह वाले.
सीने से लगाओ बच्चों को, पुरखों की दुआयें भी ले लो,
क्या आज पता घर लौटेंगे, घर से निकले जो घरवाले.
ख़ामोश समन्दर है देखो , आकाश भी है सहमा सहमा,
आने को क़यामत है फिर से, जागे रहना पहरेवाले.
घर को किसने बरबाद किया, ये राज़ न पूछो तुम हम से,
घर वाले भी कुछ कम तो नहीं, बदनाम फ़कत बाहरवाले.
क़ातिल जो मिलें हम को जो कहीं, सीने से लगालें हम उनको,
जीने में यहाँ तकलीफ़ बहुत, हम देंगे दुआ मरनेवाले.
इंसा को तलाशें हैं हम तो, शहरों-शहरों, गाँवों- गाँवों,
चहुँओर यहाँ मंदिरवाले, हर सिम्त यहाँ मस्ज़िदवाले.
डॉ. सुभाष भदौरिया.ता.03-04-09 समय.8-55pm.
बेचे हैं वतन को किस्तों में, सोये हैं वतन के रखवाले.
इससे तो अँधेरे बेहतर थे, डसते हैं हमें ये उजियाले .
है कौन निशाने पर अब की, शामत ये किस की आयी है ?
निकले हैं मिशन पर अब फिर से, देखो तो ज़रा अल्लाह वाले.
सीने से लगाओ बच्चों को, पुरखों की दुआयें भी ले लो,
क्या आज पता घर लौटेंगे, घर से निकले जो घरवाले.
ख़ामोश समन्दर है देखो , आकाश भी है सहमा सहमा,
आने को क़यामत है फिर से, जागे रहना पहरेवाले.
घर को किसने बरबाद किया, ये राज़ न पूछो तुम हम से,
घर वाले भी कुछ कम तो नहीं, बदनाम फ़कत बाहरवाले.
क़ातिल जो मिलें हम को जो कहीं, सीने से लगालें हम उनको,
जीने में यहाँ तकलीफ़ बहुत, हम देंगे दुआ मरनेवाले.
इंसा को तलाशें हैं हम तो, शहरों-शहरों, गाँवों- गाँवों,
चहुँओर यहाँ मंदिरवाले, हर सिम्त यहाँ मस्ज़िदवाले.
डॉ. सुभाष भदौरिया.ता.03-04-09 समय.8-55pm.
भाईसाहब यकीन मानिये कि जिस दिन लोग धर्म का सही अर्थ जान सकेंगे सिर्फ़ इंसान ही बन कर रह सकेंगे दूसरा कोई विकल्प ही न रहेगा।
जवाब देंहटाएंसाधु...साधु