सापूतारा एन.सी.सी.ट्रेक एन.सी.सी आफीसर डॉ.सुभाष भदौरिया.
गज़ल
दश्त में हैं या हम रेगज़ारों में हैं.
हम से मत पूछिए,किन कतारों में हैं.
ग़म को समझेंगे मेरे भला किस तरह,
मुब्तला आजकल जो बहारों में हैं.
छोड़िए, छोड़िए, आप भी कम नहीं,
हमको मालूम किसके इशारों में हैं.
हम से अब वो मिलें, तो मिलें किस तरह,
चाहने वाले उनके हज़ारों में हैं.
हम से कहते थे जो हम बिकाऊ नहीं,
देखिये वो ही अब इश्तिहारों में हैं.
ये अलग बात है वो न समझें हमें,
जो मुस्लसल हमारे विचारों में हैं.
कोई आये तो हमको पता भी चले,
हम तो उजड़े हुए अब दयारों में हैं।
गज़ल
दश्त में हैं या हम रेगज़ारों में हैं.
हम से मत पूछिए,किन कतारों में हैं.
ग़म को समझेंगे मेरे भला किस तरह,
मुब्तला आजकल जो बहारों में हैं.
छोड़िए, छोड़िए, आप भी कम नहीं,
हमको मालूम किसके इशारों में हैं.
हम से अब वो मिलें, तो मिलें किस तरह,
चाहने वाले उनके हज़ारों में हैं.
हम से कहते थे जो हम बिकाऊ नहीं,
देखिये वो ही अब इश्तिहारों में हैं.
ये अलग बात है वो न समझें हमें,
जो मुस्लसल हमारे विचारों में हैं.
कोई आये तो हमको पता भी चले,
हम तो उजड़े हुए अब दयारों में हैं।
उपरोक्त तस्वीर सापूतारा के जंगलों में एन.सी.सी.ट्रेक करते समय हमारी है क्या पता था शिक्षा विभाग के रहनुमा अहमदाबाद से गुजरात के सबसे पिछड़े इलाके पंचमहाल जिले के शहरा गाँव में पटककर अपनी हसरतें निकालेंगे। अब जून में कहां होंगे किसे पता सुना हैं हम उनकी हिटलिस्ट में हैं। पर जहां भी होंगे तुम्हें याद करेंगे जाने ग़ज़ल.
डॉ.सुभाष भदौरिया.ता. 14-04-09 समय- 12.45PM.
डॉ.सुभाष भदौरिया.ता. 14-04-09 समय- 12.45PM.
हूं. लगता है मामला काफ़ी संजीदा है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुभाष जी...क्या ग़ज़ल कही है....वाह...
जवाब देंहटाएं"मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है...." आप शिक्षा विभाग द्वारा की गयी ज्यादतियों की चिंता मत कीजिये...ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती...लेकिन जब पढ़ती है...जान निकाल देती है ससुरी...
नीरज
सांकृत्यायनजी मामले की संज़ीदगी को समझकर आप उजड़े दयार में आये आपकी दरियादिली का अहसास कराया.शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपकी हूं के क्या कहने
एक शेर याद आगया-
कहा ज़ालिम ने, मेरा हाल सुनकर,
वो इस जीने से मर जाये तो अच्छा.
और नीरजजी
बहुत देर की दर पे आँखें लगी थी-
ऊपर वाले की लाठी नहीं उससे ज़्यादा की ज़रूरत है उन्हें.
अहमदाबाद आना होता है तभी कुछ लिख पाता हूँ.इसी साल कालेज खुली है वहाँ सब कुछ हवामें हैं.अभी जमीन का मामला अटका हुआ है.न फर्नीचर न,कंप्यूटर,जैसे तैसै समय काट रहे हैं.
मैने एक शेर में कहा था
तुम जो काटोगे उंगलियाँ मेरी,
हम ग़ज़ल फिर भी गुनगुनायेंगे.
बाकी क्या कहें हमारी ग़ज़लों में सब कुछ नुमाया है.
आप ने बहुत दिनो के बाद दस्तक दी नाराज़ थे क्या.
आपकी गज़लों को निरंतर पढ़ा करता हूँ कुछ कहने के ख़तरे जानता हूँ.आपका उज़डे दयार की खबर लेना अच्छा लगा. मुहब्बत बनाये रखिए.आमीन.
भददौरिया साहब ये न पूछिये कि आपके ब्लॉग पर कैसे पहुँचा लेकिन जब पहुँचा दो मैं दीवाना हो गया आपकी ग़ज़लों का आपने जो ग़ज़लें लिखीं हैं बहुत ही सटीक और धार में हैं और हमारी व्यस्था पर कडे प्रहार करती है बेहतर रचनाओं के लिए बधाई और मैं आपका फैन हो गया\
जवाब देंहटाएं