ग़ज़ल
मेरी गलियों में वो आये, तो कोई बात बने.
और फिर आ के न जाये, तो कोई बात बने.
चाँद का दर्द सुनाता है सभी को अकसर,
दर्द तारों का सुनाये तो कोई बात बने.
दिल के कोने में कहीं, अपने जगह दे हमको,
वो मेरा चैन चुराये तो कोई बात बने.
जान लेवा है ये सूरज की तपिश राहों में,
बन के बदली वो जो छाये तो कोई बात बने.
कब से बैठा हूँ मैं, रूठा हुआ तनहाई में,
वो कभी आ के मनाये तो कोई बात बने.
दिल को सबने तो दुखाया है कई बरसों से,
वो भी इस दिल को दुखाये, तो कोई बात बने.
बाद मरने के वो करता है, नवाज़िश सबकी,
मौत अब ज़ल्द बुलाये तो कोई बात बने.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.18-5-09 समय 11-00AM
मेरी गलियों में वो आये, तो कोई बात बने.
और फिर आ के न जाये, तो कोई बात बने.
चाँद का दर्द सुनाता है सभी को अकसर,
दर्द तारों का सुनाये तो कोई बात बने.
दिल के कोने में कहीं, अपने जगह दे हमको,
वो मेरा चैन चुराये तो कोई बात बने.
जान लेवा है ये सूरज की तपिश राहों में,
बन के बदली वो जो छाये तो कोई बात बने.
कब से बैठा हूँ मैं, रूठा हुआ तनहाई में,
वो कभी आ के मनाये तो कोई बात बने.
दिल को सबने तो दुखाया है कई बरसों से,
वो भी इस दिल को दुखाये, तो कोई बात बने.
बाद मरने के वो करता है, नवाज़िश सबकी,
मौत अब ज़ल्द बुलाये तो कोई बात बने.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.18-5-09 समय 11-00AM
वाह !!! रवानगी लिए सुन्दर ग़ज़ल !!
जवाब देंहटाएंसुभाष जी
जवाब देंहटाएंआपकी गजल के भाव बहुत अच्छे लगे
मगर मैंने देखा है अब इस तरह की गजल कम ही पढने को मिलती है
शायद ते आपकी पुरानी गजल हो
आज कल तो कड़े तेवर की गजल ज्यादा पढने को मिलती है
वीनस केसरी
वीनसजी इस ग़ज़ल का राज़ को मत पूछिए.
जवाब देंहटाएंअभी तक लोगों को वक्त के हालात से वाक़िफ़ करा हुक्मरानों के खिलाफ़ जेहाद जगाने की कोशिश की क्या हुआ- सामने हैं.
वही साहब बीबी और गुलाम.धिक्कार है.
ये पुरानी ग़ज़ल नहीं है.पर ऐसी ग़ज़ल क्यों लिखी
अब इस पर लोग रिसर्च करेंगे आपने शुरूआत कर दी न.पर आप से पहले इसकी शुरुआत हो चुकी थी घर से-
हमारा पी.सी.मेहमान कक्ष से जुड़े कक्ष में हैं ग़ज़ल कंप्यूटर पर लिख ही रहा था
मेरी गलियों में वो आये तो कोई बात बने.
-कक्ष से गुजरते हुए हमारी प्राणलेवेश्वरीजी ने फिकरा कसा कि कोई नहीं आने वाला आपकी गली.उन्हें अपने भूल से आने पर काफी रंज़ है सो दूसरा क्यों फँसे.
ये ग़ज़ल पुरानी नहीं है
यकीन मानिए जो लोग अक़्सर हमारी भाषा का रोना रोते हैं उन्हें पता ही न चला अब तक की ग़ज़लें आम आदमी की भाषा में आम आदमी की पीड़ा का बयान थी.
हमारे दिल की बात जब बयां होगी तो उसका तब्सिरा करना भी लोगों के वश में नहीं होगा.देखते रहिए.