रविवार, 25 जुलाई 2010

मोदी व अमित को ही फाँसी पे चढ़ाना है.


ग़ज़ल
सच्चों की तबाही है झूठों का ज़माना है.
चहुँ ओर हमारा दिल हर इक का निशाना है.

अफ़जल व कसाबों को दामाद बनाये हो,
मोदी व अमित को ही फाँसी पे चढ़ाना है.

गोदी में बिठाकर तुम साँपो की करो पूजा,
फन उनका कुचलकर के गुजरात बचाना है.

अपनों को बचा लेना औरों को फँसा देना,
सिस्टम को तुम्हें अपनी उँगली पे नचाना है.

तुम लोग अँधरों की करते हो गुलामी सब,
मिट्टी का दिया अपना आँधी मे जलाना है.

ख़ामोश अगर हैं तो बुज़दिल न समझलेना,
रुख़ मोड़ के तूफाँ का दुनियां को दिखाना है.

कटने पे हमारा सर धड़ लड़ता है मैदां में,
अंदाज़ हमारा ये बरसों से पुराना है.



उपरोक्त ग़ज़ल वक्त के ताज़ा हालात से संबंधित है. मँहगाई, नक्सलवाद से लोगों एवं अन्य पार्टियों का ध्यान हटाने के लिए केन्द्र की तरफ से एक बार फिर गुजरात को हड़पने के लिए निशाना साधा गया है. गुजरात और मुँबई में हुए आँतकवादी हमलों के लोकल सुराग अभी तक गुप्तचर ऐजेंसिया नहीं ढ़ूंढ़ पायीं वे उसकी ज़रूरत भी नहीं समझते. केन्द्र की सारी प्रतिभा इन दिनों गुजरात की आला कमान पर केन्द्रित है और वो भी एक नामी गिरामी अपराधी को हीरो का दर्जा देकर गुजरात के लोगों द्वारा चुनी गयी लोक प्रिय सरकार को तंग करना कहाँ तक उचित है. भोपाल गैस काँड के असली गुनहगारों तक पहुँचने का सामर्थ्य किसी में नहीं सिस्टम कठपुतली बन चुका है. देश में अपराधियों को प्रोत्साहन मिले और उनका इलाज़ करने वाले सलाखों के पीछे हों ये तमाशा गुजरात में पिछले एक साल से चल रहा है. तू डाल डाल डाल मैं पात पात के इस खेल को देख कर देश के सयाने सयानी मंद मंद मुस्करा रहे हैं. दो हाथियों की लड़ाई में कुचली घास ही जायेंगी घास में रहने वालीं चीटियाँ इन दिनों थर थर काँप रही हैं उनका क्या होगा.
डॉ.सुभाष भदौरिया. ता. 25-07-10

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