ग़ज़ल
तुझपे जीते रहे, तुझ पे मरते रहे.
हम ग़ज़ल में, तुझे याद करते रहे.
यूँ तो ख़त तुझको लिखते रहे रात दिन,
तेरे हाथों में देने से डरते रहे.
भूल कर तूने डाली न हम पर नज़र,
तेरी ख़ातिर तो ही हम सँवरते रहे.
खिड़िकियों से न देखा कभी झाँककर,
तेरी गलियों से तो हम गुज़रते रहे.
ये अलग बात कोई न पूरे हुए,
यूँ तो अरमान दिल में उभरते रहे.
हमने सोचा था कि मान जायेंगे वो,
और वो थे कि हरदम मुकरते रहे.
हमने सोचा था कि मान जायेंगे वो,
और वो थे कि हरदम मुकरते रहे.
आँधियाँ ग़म की चलती रहीँ उम्र भर,
सूखे पत्तों से हम तो बिखरते रहे.
डॉ.सुभाष भदौरिया. ता.06-12-2011
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें