ग़ज़ल
हमने चाही वो हमको ख़ुशी ना मिली.
दुश्मनी तो मिली, दोस्ती ना मिली.
दूर ले जाये हमको बहाकर कहीं,
तेज़ रफ़्तार की वो नदी ना मिली.
यूँ अँधेरे मिले बेतहाशा हमें,
पर लिपटकर कभी रोशनी ना मिली.
कोई आँसू बहाये हमारे लिए ?
आँख में वो किसी के नमी ना मिली.
हादसा ये हुआ क्या कहें अब तुम्हें,
आसमां तो मिला पर ज़मी ना मिली.
अपने हिस्से में वो ज़िन्दगी ना मिली.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.02-12-2011
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें