ग़जल
आँसुओं की कहानी न पूछो.
कौन थी ऋतु सुहानी न पूछो.
डूबना ही मुक़द्दर था अपना,
कितना गहरा था पानी न पूछो.
उम्र भर यूँ ही तड़पा किये हैं,
उसकी कोई निशानी न पूछो.
बोझ बचपन का क्या कोई कम था,
अपनी ज़ख़्मी जवानी न पूछो.
सिर्फ राजा ही पागल नहीं था,
उसकी पागल थी रानी न पूछो.
इश्क की झोपड़ी को समझलो,
हुस्न की राजधानी न पूछो.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.07-11-2011
इश्क की झोपड़ी को समझलो,
जवाब देंहटाएंहुस्न की राजधानी न पूछो.
वाह...वाह...वाह...बेजोड़
नीरज
आदरनिये सुभाष जी... मेरे पास ऐसा कोई मुकम्मल शब्द का ज़खीरा नहीं है जहां से बेतहाशा शब्दों को निकाल कर आपकी तारीफ़ में तारों की चमकीली आकाश गंगा आपके आँगन में उतार दूं... आपकी हर एक गज़ल बेहद उम्दा है... मुझे पढ़कर बेहद खुशी हूँ... यह आप समझ ही सकते हैं कि आपकी लेखनी को पढने के बाद मैंने कैसे आपका नंबर खोज के आपसे बात की... सीधे शब्दों में कहूँगा आपकी हर एक ग़जल लाज़वाब है... :-)
जवाब देंहटाएंजनाब दीपकजी आपने मेरी ग़ज़लें ही सर्च नहीं कीं मेरा मोबाइल सर्च कर आपने जो बात कर हौसला अफ़्ज़ाई की उसके लिए क्या कहूँ साहब अलफ़ाज़ मेरे पास भी कहाँ है जो आपकी ज़र्री नवाज़ी का बयां कर सकूँ.
जवाब देंहटाएंरही मेरे आंगन में तारों की चमकीली गंगा उतारने की बात सो तन्हा एक गाँव में तीन साल से जिलावतन तन्हा प्रिंसीपल के प्रमोशन की सज़ा भुगत रहे हैं घर के कमरों में अब मकड़ जाले उतर आयें हैं सब कुछ छुटा, दोस्त,परिवार पर ग़ज़ल न छुटी.
आप जैसे कद्रदान जब आवाज़ देते हैं तो जी उठते हैं साहब. मुहब्बत बनाये रखिये साहब.