भागोगे कहाँ बोलो जब लेंगे निशाने में. ग़ज़ल |
इक उम्र हुई हमको घर अपना
बनाने में.
कुछ देर तो होगी ही
दुश्मन को गिराने में.
ख़ामोश अगर हैं तो बुज़दिल
न समझ लेना,
भागोगे कहाँ बोलो जब
लेंगे निशाने में.
चूहों को चढी मस्ती, उछले
हैं बहुत सर पे,
ख़तरे हैं बहुत ख़तरे
शेरों को जगाने में.
कट जाये अगर सर तो धड़
लड़ता है मैदा में,
पुरखों का लहू अब भी बाकी
है ख़ज़ाने में.
साहिल पे खड़े रह कर देखे
हो तमाशा तुम,
देरी नहीं लगती है तूफ़ान
के आने में
कश्मीर की वादी में माना
कि वो बहके हैं,
हाथ तुम्हारी भी ये आग
लगाने में.
डॉ. सुभाष भदौरिया.
ख़ामोश अगर हैं तो बुज़दिल न समझ लेना,
जवाब देंहटाएंभागोगे कहाँ बोलो जब लेंगे निशाने में...
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... मज़ा आ गया ...
bahot khub sirji
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति जी , खूबसूरत भाव ।
जवाब देंहटाएंbahut shandar gajal
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