ग़ज़ल.
टूटे दिल को मेरे फिर सहारा मिले.
तेरे जैसा कोई फिर दुबारा मिले.
डूब जाऊँ किनारों पे मैं शौक़ से,
शर्त है ये कि पहले किनारा मिले.
जान हँसकर के दे दें मुहब्बत पे हम,
तेरी आँखों का गर जो इशारा मिले.
एक मुद्दत से तरसे हैं आँखे मेरी,
ख़्वाब में ही सही पर नज़ारा मिले.
कब तलक राह देखें, बता अब तू ही,
दूसरों का नहीं हक हमारा मिले.
डॉ. सुभाष भदौरिया
प्रशासन कि दुनियां से ग़ज़ल की दुनियां में हमने एक फिर दस्तक दी है. हमारे चाहने वाले तस्कीन करें कि हमारा ग़ज़ल का हुनर अब भी बरकरार है.
एक मुद्दत से तरसे हैं आँखे मेरी,
जवाब देंहटाएंख़्वाब में सही पर नज़ारा मिले.
wah waah !!!
बहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएंक्या सुन्दर गज़ल लिखी आपने सर
जवाब देंहटाएंहर शेर नायाब
खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (06-05-2013) के एक ही गुज़ारिश :चर्चा मंच 1236 पर अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें ,आपका स्वागत है
सूचनार्थ
बहुत उम्दा, बेहतरीन गजल ,,,सुभाष जी,,,
जवाब देंहटाएंमैंने आपके ब्लॉग का अनुसरण कर लिया है आप भी फालो करें मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,
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उम्दा प्रस्तुति सुभाष जी...
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