ग़ज़ल.
धूप में जल रहे हैं कदम दोस्तो.
साथ में सिर्फ अपने हैं ग़म दोस्तो.
याद फिर उसकी आयी हमें देर तक,
आँख फिर हो गयी अपनी नम दोस्तो.
मोम के वो नहीं जो पिघल जायेंगे,
अपने पत्थर के हैं इक सनम दोस्तो.
साथ में आजकल वो कहां हैं मेरे ?
साथ खायी थी जिसने कसम दोस्तो.
वक्त आया तो हमको पता ये चला,
हमको कितने थे झूटे भरम दोस्तो.
ग़ैर तो ग़ैर उनका गिला क्या करें,
अपनों के भी बहुत हैं करम दोस्तो.
डॉ.सुभाष भदौरिया
lajawaab....
जवाब देंहटाएंKunwar ji,
वक्त आया तो हमको पता ये चला,
जवाब देंहटाएंहमको कितने थे झूटे भरम दोस्तो.
ग़ैर तो ग़ैर उनका गिला क्या करें,
अपनों के भी बहुत हैं करम दोस्तो.
बहुत शानदार गज़ल । एक से एक शेर कामयाब और मुबारकबादी हैं
मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना 31-05-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
कुलदीप ठाकुर...
मोम के वो नहीं जो पिघल जायेंगे,
जवाब देंहटाएंअपने पत्थर के हैं इक सनम दोस्तो.
वक्त आया तो हमको पता ये चला,
हमको कितने थे झूटे भरम दोस्तो.
इन दो अश'आरों पर विशेष रूप से दाद स्वीकार करें. शानदार गज़ल के लिए बधाई..........