ग़ज़ल
तुमको हम सब को बेंच डालेंगे.
मसखरे देश क्या सँभालेंगे.
लोग भी कम नहीं हरामी कुछ,
इन हकीमों से ही दवा लेंगे.
ख़ैर अपनी मनायें वो सर की,
मेरी पगड़ी को जो उछालेंगे.
हाथ आये हमारे गर लुच्चे,
हम भी फिर हसरतें निकालेंगे.
ऐक दुनियां उजड़ गयी तो क्या,
दूसरा फिर जहां बसा लेंगे.
डॉ. सुभाष भदौरिया
waaaaaaaaaaaaaaah !
जवाब देंहटाएंumda
असभ्य समाज में सभ्य लोगों को सभ्यता नहीं छोडनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंआपके इशारे को समझ परिवर्तन कर दिया है जनाब.
जवाब देंहटाएंअब सही है। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल अच्छी है।