ग़ज़ल
रोये है कभी दिल कभी
फरियाद करे है.
यादों में तेरी ज़िन्दगी
बर्बाद करे है.
ये बात अलग तूने उसे
छोड़ दिया है,
दीवाना तेरा अब भी तुझे
याद करे है.
ज़ख़्मों पे नमक छिड़क
के पूछे है हुआ क्या,
इस तरह वो दिल को मेरे
नाशाद करे है.
पिंजड़े में रख के छीन
लिया आँसमां उसने,
पर काट कर के वो मुझे
आज़ाद करे है.
दिल खूँन उगलता है अब
ग़ज़लों में हमारी,
वो पर्दानशी हौले से
इर्शाद करे है.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात.
Bahot khub sir
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