ग़ज़ल
तन्हा तो बहुत पहले भी थे पर, इस बार की तन्हाई तोबा.
डूबेंगे यकीनन लगता है, तेरे इश्क की गहराई तोबा.
हम राह तकें जिसकी हर दम, वो भी तो सुने दिल की बतियां,
अँखियां भर आयी क्यों अपनी, भूला है वो हरजाई तोबा.
जी चाहे हथेली पे रख दूँ, मैं चांद सितारों को उसके,
दिल की ही दिल में रह जाये, देखूं जो मैं मँहगाई तोबा.
पूछो न क़यामत होती है, उस वक्त का मंज़र क्या कहिए !
हाथों को उठाकर लेते हैं, जिस वक्त वो अंगड़ाई तोबा.
मैं जाँऊं जहां मुझसे पहले, पहुँचे हैं मेरे अब अफ़साने,
उंगली को पकड़कर ले जाये,तेरे इश्क की रुस्वाई तोबा.
वैसे तो पहाडों की दूरी कुछ भी नहीं है दीवानों को,
पावों में पड़े छाले अपने, तेरे दिल की ये उँचाई तोबा.
मैंने भी सुना है लोगों से हाथों में रची मँहदी तेरे,
अब जान ही लेकर जायेगी, गलियों की ये शहनाई तोबा.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.06-11-2013
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