ग़ज़ल
उनसे अब बात कहाँ
होती है ?
अब मुलाक़ात कहाँ
होती है ?
रोज़ आँसू कहाँ ये
निकले हैं,
रोज़ बरसात कहाँ
होती हैं ?
दिन तो कट जाये हैं ये कैसे भी,
खुशनुमा रात कहाँ
होती है ?
रोज़ गुलशन में कहाँ
जाते हैं,
रोज़ अब घात कहाँ
होती है ?
इश्क होता है कहाँ पूछे से ,
इश्क की ज़ात कहाँ होती है ?
मौत का साथ निभाना
निश्चित,
ज़िन्दगी साथ कहाँ
होती है ?
डॉ. सुभाष भदौरिया
ता.02-04-2014
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