ग़ज़ल
बेवफ़ा इस तरह
बेवफ़ाई न कर.
यूँ सरेआम तू जग हँसाई न कर.
दोस्त राहों में
काँटे बिछाने लगे,
लोग कहते थे ज़्यादा
भलाई न कर.
दिल की राहों में ज़ोख़म बहुत हैं सुनो
और ज़्यादा तू अब दिल-लगाई न कर
ख़ूँन रिसने दे
ज़ख़्मों से मेरे यूँ ही,
दूसरों की मगर यूँ
दवाई न कर.
क़त्ल कर शौक़ से
हक़ दिया ये तुझे.
सामने दुश्मनों के
बुराई न कर.
साथ आ न मेरे मुझको
कुछ ग़म नहीं,
साथ औरों के तो
आवा-जाई न कर .
डॉ. सुभाष भदौरिया
ता.28-03-2014
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