शुक्रवार, 21 मार्च 2014

वो हवाओं में वार करता है

ग़ज़ल
वो हवाओं में वार करता है.
खूब ऊँचे शिकार करता है.

उसकी हसरत है क्या मैं जाने हूँ.
मुझसे कहता है प्यार करता है.

मेरी आँखों से पी बहक जाये,
होठ पर जां निसार करता है.

एक दो बार हो तो माफ़ करूँ,
ग़लतियां बार बार करता है.

जिस्म की वादियों में खोया है,
दिल के टुकड़े हजार करता है.

बेवफ़ाई हो अब हुनर जैसे,
सबसे वादे उधार करता है.

मेरी जैसी अगर हजारों हैं,
क्यों मेरा इंतज़ार करता है.

डॉ. सुभाष भदौरिया तारीख-21-03-2014






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