ग़ज़ल
बीच में अपने जो दूरियाँ हैं.
कुछ तो समझो ये मज़बूरियां है.
ऐब हम में हैं लाखों क़बूल,
ये न भूलो कि कुछ खूबियां हैं.
उम्र भर हम तो भागा किये हैं,
हाथ आती कहां तितलियां है.
भीड़ में कोई ख़तरा नहीं है,
जान लेवा ये तन्हाईयां हैं.
शुहरतें साथ उनके हैं चलतीं,
साथ अपने तो रुस्वाईयाँ हैं.
ज़ख़्म फिर से हरे हो उठे हैं,
जब भी बजती ये शहनाईयां हैं.
फिर समन्दर भी उछले बहुत है,
चाँद ले जब भी अँगड़ाईयां है.
डॉ. सुभाष भदौरिया तारीख-21-03-2014
Koi titali, hamare paas, aati bhi to kya aati
जवाब देंहटाएंSajae umra bhar kagaj ke phul aur pattiya humne
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