ग़ज़ल
अपनी
नज़रों से यूं ना गिरा दीजिये.
दूसरी
जी में आये सज़ा दीजिये.
छोड़िये,
छोड़िये, सारे शिकवे-गिले,
हो
सके तो ज़रा मुस्करा दीजिये.
थम
ना जायें कहीं आशिकी में कदम,
थोड़ा
थोड़ा सही हौसला दीजिये.
मर
न जाये कहीं याद में तेरी ये,
अपने
बीमार को कुछ दवा दीजिये.
फ़ैसला
जो भी कीजे वो मंज़ूर है,
क्या
ख़ता है हमारी बता दीजिये.
हम
जो हकदार हैं तो लगाओ गले,
और
जो दीवार हैं तो गिरा दीजिये.
डॉ.
सुभाष भदौरिया ता.14-02-2013
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