ग़ज़ल
जब से आयें हैं, वो ज़िन्दगी में.
दिल ये लगता नहीं अब किसी में.
मौत पानी की लिक्खी थी मेरी,
मैं तो डूबा हूँ गहरी नदी में.
दिल मचलता है यूँ ही नहीं ये,
बात कुछ तो है उस अजनबी में.
हमसे प्यासों से कोई ये पूछे,
उम्र कैसे कटी तश्नगी में.
अय अँधरो तुम्हीं हाथ थामो,
मुझको धोखा हुआ रोशनी में.
खेल समझे थे, वे दिल लगी को,
जान दे बैठे हम, दिल लगी में.
ज़िन्दगी तुझको लाऊँ कहाँ से ?
देख आये हैं वो आख़िरी में.
डॉ. सुभाष भदौरिया. ता.09-04-2018
दिल ये लगता नहीं अब किसी में.
मौत पानी की लिक्खी थी मेरी,
मैं तो डूबा हूँ गहरी नदी में.
दिल मचलता है यूँ ही नहीं ये,
बात कुछ तो है उस अजनबी में.
हमसे प्यासों से कोई ये पूछे,
उम्र कैसे कटी तश्नगी में.
अय अँधरो तुम्हीं हाथ थामो,
मुझको धोखा हुआ रोशनी में.
खेल समझे थे, वे दिल लगी को,
जान दे बैठे हम, दिल लगी में.
ज़िन्दगी तुझको लाऊँ कहाँ से ?
देख आये हैं वो आख़िरी में.
डॉ. सुभाष भदौरिया. ता.09-04-2018
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