ग़ज़ल
याद आया तो बहुत देर रुलाया उसने.
कितनी आसानी से हमको है भुलाया उसने.
इससे ज़्यादा कोई क्या हमसे मुहब्बत
करता,
मैं जो भूखा रहा इक कौर ना खाया उसने.
हाथ से उसके जो छटका था हुए टुकडे़ कई,
कांच का वर्तन था भूले से गिराया उसने.
आँसू बनकर के जो छलका मैं कभी आँखों से,
अपनी सखियों को गिरा तिनका बताया उसने्.
और होता तो कोई दिल पे ने लेते अपने,
दुख तो इस बात का दिल मेरा दुखाया उसने.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.02-06-2018
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