बुधवार, 30 मई 2018

चिंता हगने के करते हैं वो हर घड़ी, पहले खाने का उपचार कुछ तो करें.

ग़ज़ल
चिंता हगने की करते हैं वो हर घड़ी,
पहले खाने का उपचार कुछ तो करें.
भूख से मर रहे हैं यहां आज हम, 
हो सके सच का इक़रार कुछ तो करें.

आसमां में उड़े हम को कुछ ग़म नहीं, 
बात कुछ तो जमी की ज़रूरी है अब,
हम निराधार है आज भी देख लो,
 हो सके तो वो आधार कुछ तो करें.

 गीत महलों के गायें बहुत आपने, 
झोपड़ी की व्यथा भी समझ लीजिए,
सब लुटा दे अमीरों को साहब मगर,
मेरे हक़ में भी सरकार कुछ तो करें.

जान होटों पे अब आ गई जान लो, 
गिन लो सारी पसलियां हमारी सुनो,
खूँन चूंसा सभी ने हमारा यहाँ, 
हम हैं बरसों से बीमार कुछ तो करें.

झूट चांदी की थाली परोसे हैं वे,
 और सच से किनारा वो करने लगे
 कितना ख़ामोश मंजर है चारों तरफ,
 हैं ये तूफां के आसार कुछ तो करें.

 डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.30-05-2018








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