ग़ज़ल
मेरे
लफ़्ज़ों में जान दे मौला.
सबको
ऊँची उड़ान दे मौला.
अस्लिहे
हाथ जो लिए फिरते,
हाथ
उनके क़ुरान दे मौला.
भाईचारा
ख़ुलूस बख़्श हमें,
नेकियों
का जहान दे मौला.
घुप
अँधेरों का क़हर ज़ारी है,
ऱौशनी
का निशान दे मौला.
क़ाफ़िला
राह बहुत भटके है,
कोई
फिर से इमाम दे मौला.
रमज़ान के पावन मास और अपने
पहले रोज़े पर ये ग़ज़ल अमन के नाम है.
मैं हमेशा नवरात्रि में 9 दिन के व्रत रखता हूँ. बहुत
आसानी समय कट जाता है. पर रोज़ा में सुब्ह सहरी के निश्चित वक्त तकरीबन सुबह 4 बजे के करीब सब कुछ बंद हो जाता है. रात्रि तय
कर लिया था कि इस बार ख़ास कर प्यास की शिद्दत को फिर से महसूस करना है सो आज सुब्ह पहले रो़ज़े का आगाज़ किया. पानी के
बिना रहना और सारे अपने काम करना. प्यास तो लगती है पर एक बार तय कर लो तो फिर
शक्ति अपने आप मिल जाती है. आज ऐसा ही हुआ. आज कोलेज में रोज़ा खोला नमाज़ आती
नहीं रोज़े खोलने के पहले सिक्युरिटी गार्ड मक्सूद ने पहले वज़ु करना सिखाया फिर
नमाज़ और जैसी अज़ान हई तो उसने खोल दो रोज़ा सर. ये तस्वीर उसी की हैं मैनें
एन.सी.सी. में फौजियों से तमाम ट्रेनिंग ली है कोई बाकी नहीं. बिना पानी के रहना
रोज़ा से सीखा है.
कोलेज
में अभी स्टाफ और विद्यार्थीओं का वेकेशन चल रहा है प्रिंसीपल को वेकेशन कहां.
रोज़ा खान-पान के साथ अन्य
बुराईयों पर फ़तह पाने तथा मज़्लूम मुफ़लिस गरीब लोगों की इमदाद करने का ट्रेनिंग
पीरियड है जो साल भर काम आता है. प्रधान मंत्रीश्री नरेन्द्र मोदीजी ने इस बार मन
की बात पर रोज़े का ज़िक्र किया और सब को
मुबारकाबाद भी दी. वे हमेशा नवरात्रि के व्रत रखते हैं मात्र नीबू पानी पर एक दिन
रोज़ा रख के देखें कि सुब्ह 4 बजे से शाम 7.30 बजे तक गर्मी के दिनों में पानी के
बिना रहना कितना कठिन हैं. एक और रमज़ान
के महीने में हुकूमते हिन्दने सेना को आपरेशन आलआउ्ट पर रोक लगा दी है साथ ही
सामने से हमला होने परे पूरे इख्तियार भी दिये हैं.
दुश्मनी
का सफ़र इक कदम दो कदम,
तुम
भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे.
सालों
बीत गये न तुम थके न हम थके. कम से कम रोज़े के दिनों में तो अस्लाहों को ख़ामोश
रहने दें. आमीन.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात
तारीख.17-05-2018
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें