ग़ज़ल
तन्हा तो बहुत पहले भी थे
पर इस बार की तन्हाई तौबा.
डूबेंगे यकीन लगता है तेरे
प्यार की गहराई तौबा.
मैंने भी सुना है लोगों से
हाथों में रची तेरे मेंहदी,
अब जान ही लेकर जायेगी,
गलियों की ये शहनाई तौबा.
पूछो न क़यामत होती है उस
दौर का मंजर क्या कहिए,
हाथों को उठाकर लेते हैं
जिस वक्त वो अंगड़ाई तौबा.
मैं राह तकूँ जिसकी हरदम वो
भी तो सुनें दिल की बतियाँ,
अँखियाँ भर आयीं फिर अपनी
भूला है वो हरजाई तौबा.
मैं जाऊं जहां उससे पहले
पहुँचे हैं मेरे अब अफ़साने,
उंगली को पकड़कर ले जाये
तेरे इश्क़ की रुस्वाई तौबा.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात
ता.16-05-2018
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