ग़ज़ल
किसने किसने साथ है छोड़ा मत पूछो.
नीबू जैसा हमें निचोड़ा मत पूछो.
जिसको देख के जीते थे हम बरसों से,
उसने भी अब मुख को मोड़ा मत पूछो.
जिस्म का फोड़ा होता तो सह लेते हम,
जान ही लेगा रूह का फोड़ा मत पूछो.
जो भी आया, खेला खाया खूब यहाँ,
कैसा अपना दिल है निगोड़ा मत पूछो.
कुछ तकलीफें थी उसमें, कुछ मुझ में भी,
दोनों में ही ऐब था
थोड़ा थोड़ा मत पूछो.
खेत में जिसने मिल कर लूटा मुनियां को,
मंत्री जी का है वो मोड़ा मत पूछो.
जिससे हमको बहुत उम्मीदें थीं लोगो,
वो भी निकला काग भगोड़ा मत पूछो.
चिड़िया का घर तोड़ के तुमने फेंक दिया,
तिनका तिनका उसने जोड़ा मत पूछो.
गधे का खा रहे दूध जलेबी अब देखो,
घास खा रहा बूढ़ा घोड़ा मत पूछो.
गले लगाकर आँख दबाये महफिल में,
वो भी निकला हाय छिछोड़ा मत पूछो.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.03-8-2018
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