शनिवार, 4 अगस्त 2018

हम गले जो लगे आप घबरा गये, दूसरों को लगाओ तो कुछ भी नहीं.


ग़ज़ल

हम गले जो लगे आप घबरा गये,
दूसरों को लगाओ तो कुछ भी नहीं. 
बात गन की ज़रूरी हो जिस वक्त में,
 बात मन की सुनाओ तो कुछ भी नहीं.

आँख हमने जो मारी तो हँगामा क्यों,
खेल है सब सियासत को तुम जान लो,
खेल हम जो दिखायें तो तकलीफ़ क्यों
खेल तुम जो दिखाओ तो कुछ भी नहीं.

अब तो संसद में हैं हम मदारी सभी
एक पर एक हैं सारे भारी सभी, 
आँख हम जो नचायें तो हैरान हो,
देश को तुम नचाओ तो कुछ भी नहीं.

बाँट लें बाँट ले मिल के सारा सभी छाँट लें, 
छांट ले मिल के प्यारा सभी,
हम जो खायें तो ये शोर बर्पा है क्यों,
 माल तुम जो ये खाओ तो कुछ भी नहीं.


हिन्दू मर जायें सारे हमें क्या पड़ी, 
और मुस्लमां का तुम लो बना कोरमां, 
आग हम जो लगायें तो इल्ज़ाम क्यों
 आग तुम जो लगाओ तो कुछ भी नहीं.

ऐब पर मेरे हरदम ना सोचा करो,
आईना आप भी साब देखा करो, 
दाग़ दामन पे मेरे गिनाओ बहुत, 
दाग़ अपने छिपाओ तो कुछ भी नहीं. 

कोई मस्ला भले हल न हो हम से पर,
और मस्ले बढायें चलो मिल के हम, 
बांसुरी हम बजायें तो आफत बहुत 
गाल तुम जो बजाओ तो कुछ भी नहीं.

हैं ये मुर्दों का अब देश प्यारा बहुत 
हमने मिल कर के है इसको मारा बहुत, 
चूना हम जो लगायें तो बदनाम हों
 चूना तुम जो लगाओ तो कुछ भी नहीं. 

मछलियों की तरह फाँसते हैं इन्हें
लोग फिर भी नहीं हैं जाँचते हैं हमें,
जाल में हम फंसायें तो भड़काओ तुम 
जाल में तुम फँसाओ तो कुछ भी नहीं. 

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात तारीख- 04-08-2018

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