गुरुवार, 13 दिसंबर 2007

तेरे वादे पे जिया करते हैं.

ग़ज़ल
तेरे वादे पे जिया करते हैं.
हम भी क्या रिस्क लिया करते हैं.

हम को वेटिंग में रखा करते हैं,
सब को कनफर्म किया करते हैं .

एक हम हैं कि सुधरते ही नहीं.,
मशवरे लोग दिया करते हैं.

रोज खाते हैं न पीने की कसम,
और फिर रोज पिया करते है.

ऐसा जीना भी भला क्या जीना
रोज मर मर के जिया करते हैं.

चाक करते हैं अपने दामन को,
और फिर रोज सिया करते हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद ता.13-12-०७ समय6-17AM