रविवार, 25 जनवरी 2015


ग़ज़ल

जान देकर के शान रखते हैं.
हम अजब आन बान रखते हैं.

शब्द भेदी हैं हमको पहिचानो,
दिल में तीरो कमान रखते हैं.

वैसे तो हम ज़मी पे रहते हैं,
आँख में आसमान रखते हैं.

दोस्तों पर तो जां छिड़कते हैं,
दुश्मनों का भी मान रखते हैं.

जितना खोदोगे रतन निकलेंगे,
सीने में वो खदान रखते हैं.

डूब जाओगे उलझने वालों,
समन्दरों सा उफान रखते हैं.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.25-01-2015



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