ग़ज़ल
आईनों पे इस तरह
कीचड़ ना उछालो अब.
दिल्ली तो गयी अब
की, गुजरात सँभालो अब.
उड़ना ये हवाओं में,
अब बंद करो साहब,
बाकी जो बची थोड़़ी,
उसको ही बचालो अब.
अंबाणी, अदाणी की
यारी ये डुबो देगी,
मज़्लूम व मुफ़्लिस
की बेहतर है दुआ लो अब.
कोख़ो को यहां माँ की,
इंडस्ट्री बतायें जो,
गुस्ताख़ ज़बानों को
महफ़िल से निकालो अब.
डस लेंगे तुम्हें इक
दिन कुछ होश करो अब भी,
आस्तीन के सांपों को
यूँ घर में न पालो अब.
डॉ. सुभाष भदौरिया
गुजरात ता.14-02-2014
उड़ना ये हवाओं में, अब बंद करो साहब,
जवाब देंहटाएंबाकी जो बची थोड़़ी, उसको ही बचालो अब.