रविवार, 1 मार्च 2015

अच्छे दिनों ने बीते दिनों की याद दिला दी.


ग़ज़ल

अच्छे दिनों ने बीते दिनों की याद दिला दी.
ख़ासों को खुश किया है तो आमों को सज़ा दी.

पत्थर को पूजने का ये अंजाम हुआ है
अपना ख़याल ऱखने की हमको है  सलाह दी.

लौटाना अय खुदा तू सलामत मेरे घर पे,
मां-बाप ने घर निकले ये बेटी को दुआ दी..

छीनेगा अब जमीन भी मुफ़लिस की बची जो,
इस फिक्र ने गरीब की अब नींद उड़ा दी.

गंगा को साफ करने जो निकला था सरेआम,
उम्मीद की जो अर्थी थी गंगा में बहा दी.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात 01-03-2015




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