ग़ज़ल
बेटा विकास अब तुम घर लौट
के आ जाओ.
पापा का और चाचा का दिल ना
यूँ दुखाओ. (बेटा विकास.
अम्मा तुम्हारी तरसे हैं
दाल प्याज को अब,
चूना ना सभी मिलकर अब देश
को लगाओ.( बेटा विकास
मौसी ने कर दिया है शिक्षा
का गर्क बेड़ा,
गुरुओं को फिक्स वेतन ऐसे
तो न दिलवाओ.(बेटा विकास
फूफा तुम्हारे बोर्डर की कुछ
तो ख़बर लें अब,
हर रोज़ जवानों को इस तरह ना
मरवाओ.(बेटा विकास
बातों की जलेबी हैं वो काला
धन कहाँ है ?
मामा शकुनि से हम को इस तरह
ना तलवाओ.(बेटा विकास
हक मांगने निकले थे अपना जो
हुकूमत से,
सरदार के वंशज को घर घुस के
ना पिटवाओ.(बेटा
पहले भी जला था ये, अब फिर
से जला है ये,
अब और ज़्यादा तुम गुजरात
ना जलवाओ.(बेटा विकास
गुजरात के विकास की जमीनी
हक़ीक़त उस समय सामने आ गयी जब लाखों की
तादाद में राज्य के सशक्त मानी जानी वाली कोम पाटीदार पटेल युवान, युवती, महिलायें
बुजुर्ग ओ,बी,सी, कोटा में शामिल किये जाने की मांग को लेकर सड़कों पर आये. महीनों
के आंदोलन की नब्ज़ परखने में नाकाम हुकूमत के कारण गुजरात जला. जो लोग गुजराती है
और और गुजरात से प्यार करते हैं उन्हें भंयकर पीड़ा हुई होगी मेरी ही तरह. जो भी
जानी माली नुकशान हुआ वो गुजरात का ही हुआ जिसमें पेड़ भी अपने थे और आँधिया भी
अपनी थीं.
गुजरात में ये सब होना
आकस्मिक नहीं है गुजरात में सरकारी नौकरियों में पांच वर्ष तक फिक्स वेतन की नीति
और भर्ती प्रक्रिया में विलंब और धांधली के कारण उच्च शिक्षा की तकनीकी और गैर
तकनीकी कोलेजों में हजारों की नियमित भर्ती का अभाव करार आधारित और फिक्स सेलरी से
गाडी खीचनें के कारण पूरे राज्य मे युवकों, युवतियों, माताओं बहिनों, बुजर्गों का
आक्रोश स्वाभाविक है. हां पर इस पर्वत के समान पीड़ा का पाटीदार आंदोलन के रूप में
फूट पडना गुजरात के भावी परिवर्तन का संकेत है.
गुजरात में विकास नहीं हुआ ऐसा
नहीं है भौतिक विकास हुआ है नई सरकारी कोलेजों की करोड़ों की बिल्डिगें बनी पर
उनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों की जगह खाली हैं. जो है भी वे फिक्स सेलरी पर मज्बूरी
के कारण अभी २५००० में अध्यापक कार्यरत हैं जब कि गुजरात में ही दीव दमन की
केन्द्र शासित सरकारी कोलेजों में अध्यापक को पूरी सेलरी ४३००० दी जा रही है. इस
रहष्य का पता तब हमें चला जब पिछले साल हमारी सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा के दो फिक्स सेलरी १६,५०० के हिन्दी के अध्यापक दीव और
दमन में फुल सेलरी ४३००० मे हिजरत कर गये.
गुजरात में हर विभाग में
फिक्स ५ वर्ष की सेलरी की नीति का उस समय मुझे तब गहरा अहसास हुआ जब गुजरात नेशनल
लॉ युनिवर्सिटी से ग्रेज्युट बेटा एस.बी.ट्राविनकोर बेंक में पी.ओ. की परीक्षा पास
कर केरला राज्य में नौकरी जोइन करने को मज़्बूर हो गया.
गुजरात प्रशासनिक सेवा
वर्ग-१ प्रथम परीक्षा उसने अभी पास की पर मैंनें उसे केरला बेंक रहने की सलाह दी
गुजरात में अब कोई भविष्य नहीं है और गुजरात जाहेर सेवा आयोंग पहले तो भर्ती नहीं
होती और होती भी है तो वर्षों तक विलंब की प्रक्रिया और इसी बीच गुजरात हाई कोर्ट
में किसी धाँधली की अपील फिर सब स्टोप.
इंजीनियरिंग कोलेज सरकारी कोलेज, अनुदानित
कोलेज सभी के अधिकारी गण महीने में आधे से ज्यादा दिन गुजरात हाईकोर्ट में ही शोभा
भड़ाते है खासकर उच्चशिक्षा कमिश्नर कचेहरी के किसी अधिकारी को कोई समस्या बताने
जाओ या फोन पर कहो तो साहब कोर्ट में हैं का आलम रहता है.
गजरात उच्चशिक्षा विभाग में
मेरा जोइन डायरेक्टर के पद १ वर्ष रहना हुआ है उसमें ६ महीने इंचार्ज ६ महीने
रेग्युलर उस दर्मयान गुजरात के तत्कालीन शिक्षा सचिव अडिया साहब जो अभी केन्द्र की
शोभा बढा रहे हैं और तस्वीर में वित्त मंत्री जेटली जी को जलेबी तलवाते देख मुग्ध
हो रहे हैं मैने उन्हें उस समय बताया था
कि गुजरात राज्य में पीएच. डी. करने वाले अध्यापकों के इंक्रीमेंट वापस लेना ठीक
नहीं हैं अन्य राज्यों में अन्य विभागों के पीएच.डी. करने अधिकारी कर्मचारियों को भी
प्रोत्साहित करने के लिए इंक्रीमेंट दिये जाते हैं फिर उच्चशिक्षा में तो शोध
कार्य. ज़रूरी माना जाता है.
अभी गुजरात राज्य के हजारों नियमित सरकारी एवं
अनुदानित कोलेजों के अध्यापकों के अभी भी ७००० से ८००० ग्रेड पे रुके हुए हैं.
सिलेकशन ग्रेड ड्यु हैं.
सबसे दुखद बात तो यह है कि गुजरात की सरकारी कोलेजों में अंग्रेजी विज्ञान
जैसे विषयों के नेट स्लेट अध्यापक उपलब्ध
न होने और फिक्स सेलरी पर काम न करने के कारण हजारों की तादाद में विद्यार्थियों
की शिक्षा का नुकशान हो रहा है.
हमारी सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा में ७ साल से
अंग्रेजी का नियमित अध्यापक नहीं विजीटिग
मात्र ५००० में सभी क्लासों में पढाने का काम कर रहे हैं
. २००१ में सरकारी कोलेजों
के विजीटिंग अध्यापक प्रति लेक्चर १०० रुपये का परिपत्रथा और कुल ५० लेक्चर की
मर्यादा में कुल राशि ५००० की थी. गुजरात उच्चशिक्षा विभाग ने २०१४ आदेश में एक लेक्चर के १०० रुपये की जगह २५० रुपये किये
पर कुल राशि की मर्यादा ५००० ही रखी. ५००० की मर्यादा में मात्र २० लेक्चर ही दिये
जा सकते है जब कि वर्क लोड प्रति सप्ताह एक अध्यापक का १८ से ज्यादा का रहता है.
हमारी सरकारी कोलेज
में आउट सोर्सिंग स्वीपर सफाई कर्मचारी की
तनखाह ६३०० है जब कि विजीटिगं अध्यापक की
मात्र ५००० रुपये. ना शर्मआती है न लाज
फिर वी गायें जय जय गरवी गुजरात.
उच्च शिक्षा कमिश्नर के साथ गुजरात शिक्षा विभाग
के सलाहकार (पूर्व कुलपति गुजरात युनिवर्सिटी) श्री ए.युय पटेल साहब को विजी़टिंग
अध्यापकों और हमने कहा था कि सर विजी़टिंग अध्यापकों की तनखाह बढवादो उन्होंने कहा
था कि फाइल मुख्यमंत्रीजी के पास पड़ी है. पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.
जिस राज्य में
सफाई कर्मचारी की तनखाह शिक्षक से ज्यादा हो वो रोल मोडल बताया गाया जाता हो वहां
हार्दिक जैसे तूफान आँधी का आना आकस्मिक
नहीं है. आग अगर झोपडी में लगी है तो महलों तक भी जायेगी और आग की आँख में बराबर
फूस का घर भी राजधानी भी. गुजरात और देश के हुक्मरान इसे समझें तो बेहतर है. सब
कुछ लुटा के होश में आये तो क्या हुआ.
और हाँ अब तो दाल (१५०) और
मुर्गी की भाव और प्याज और सेव का भाव १०० रुपया हो गया हो तो अँधेर नगरी चौपट
राजा सवासेर भाजी सवासेर खाजा की कथा सार्थक होती दिखाई दे रही है. देश का हर
सुधीजन सोचने को मज़्बूर है क्या से क्या हो गया बेवफ़ा तेरे प्यार में. जैसे
सांपनाथ वैसे नागनाथ हमारी किस्मत में सिर्फ डसवाना ही लिखा है क्या हे राम हे राम-----
गुजरात के नवयुवक अब सेना में भर्ती के लिए आकर्षित हुए पुलिस में फिक्स सेलरी में क्या करें. हमारी सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा के विद्यार्थी बीच में ही कोलेज छोड फौज में भर्ती हो गये. हमारी एन.सी.सी. तीन साल से मांग के बाद एन.सी.सी. गुजरात निदेशालय से नही मिली. गोधरा बटालियन में फाइल अटकी पड़ी है. एन.सी.सी. युनिटें अगर सरकारी कोलेजों में दी जायें तो युवकों को सेना में जाने के लिए ट्रेनिग के साथ प्रोत्साहित किया जा सकता है. सीमावर्ती प्रदेश होने के बावज़ूद गुजरात की अब तक कोई अपनी रेजीमेंट नहीं है. क्या अच्छा हो कि गुजरात के पाटीदारों की अपनी सेना में रेजिमेंट हो वो सड़कों पर ही नहीं बोर्डर पर भी अपनी शिनाख़्त दे.केबिनेट की रेजीमेंट तो काम आयी नहीं हे राम अपने हुए पराये घर को ही आग लग गई घर के चिराग से.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात.
तारीख १५-०९-२०१५
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