गुरुवार, 10 नवंबर 2022

 

ग़ज़ल

पुल पे जाने से अब लोग डरने लगे.

मोरबी की व्यथा याद करने लगे.


ट्रेन भैसों से ज़ख्मी हुईं आजकल,

रंग वफ़ा के यहां भी उतरने लगे.


उनकी सौगात की आँधियां यूं चली,

सूखे पत्तों से हम तो बिखरने लगे.


जिनकी परवाज़ थी आसमानों तलक,

बैठ कर पर वे उनके कतरने लगे.


 इतना मत प्यार कर हम को ओ बेवफ़ा,

हम मुहब्बत में अब तेरी मरने लगे.

 

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता. 10/11/20222

 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-11-2022) को   "भारतमाता की जय बोलो"  (चर्चा अंक 4609)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-11-2022) को   "भारतमाता की जय बोलो"  (चर्चा अंक 4609)     पर भी होगी।
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    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-11-2022) को   "भारतमाता की जय बोलो"  (चर्चा अंक 4609)     पर भी होगी।
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    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  4. उनकी सौगात की आँधियां यूं चली,
    सूखे पत्तों से हम तो बिखरने लगे... बहुत सुन्दर जनाब भदौरिया जी!

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