ग़ज़ल
वक्त के साथ बदल जाता है.
ताज़ जाता है ताज़ आता है.
अपने चहरे पे मुर्दगी
छायी,
चहरा उसका तो जगमगाता है.
नींद आँखों से अपनी गायब
है,
बेंच वो मुल्क मुस्कराता
है.
देश भेड़ों में हो गया
तब्दील,
रात दिन सब को वो चराता
है.
उसकी छत से टपक रहा अमृत,
चाट कर सबको वो बताता है.
उसकी जादूगरी के क्या
कहने,
आग पानी में वो लगाता है.
दाग़ पर दाग़ लग रहे फिर भी,
और दाग़ों को वो छुपाता
है.
मौत से हमको मत डराना
तुम,
मौत से खानदानी नाता है.
उपरोकत तस्वीर से ये ग़ज़ल वाबिस्ता है.
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