दिखा के पीठ यूं मैदां से हो रहा रख़सत।
उसूल जंग के इस तरह तोड़ता क्यों है।।
तेरा भी हाथ है शामिल मेरी तबाही में।
मेरा ही हाथ तू हरदम मरोड़ता क्यों है।।
तुझे है वास्ता मेरे न मरने जीने से ।
मुझे तू नीबू सा हरदम निचोड़ता क्यों है।।
शरीफ बन के वो लूटे है सीधे सादों को।
वो अपना ठीकरा सर मेरे फोड़ता क्यों है।।
डॉ.सुभाष भदोरिया अहमदाबाद गुजरात।
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