शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

तेरा भी हाथ है शामिल मेरी तबाही में।


ग़ज़ल

पुराने ज़ख़्मों को मेरे झिंझोड़ता क्यों है।
तू अपने आपको औरों से जोड़ता क्यों है।।

हलाल कर मुझे अपने हसीन हाथों से।
मैं ज़िन्दा हूं तू मुझे ज़िन्दा छोड़ता क्यों है।।

दिखा के पीठ यूं मैदां से हो रहा रख़सत।
उसूल जंग के इस तरह तोड़ता क्यों है।।

तेरा भी हाथ है शामिल मेरी तबाही में।
मेरा ही हाथ तू हरदम मरोड़ता क्यों है।।

तुझे है वास्ता मेरे न मरने जीने से ।
मुझे तू नीबू सा हरदम निचोड़ता क्यों है।।

शरीफ बन के वो लूटे है सीधे सादों को।
वो अपना ठीकरा सर मेरे फोड़ता क्यों है।।

डॉ.सुभाष भदोरिया अहमदाबाद गुजरात।

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