ग़ज़ल
आँसुओँ की कहानी न पूछो.
कौन थी ऋतु सुहानी न पूछो.
डूबना ही मुकद्दर था अपना,
कितना गहरा था पानी न पूछो.
उम्र भर हम तो तड़पा किये हैं,
उसकी कोई निशानी न पूछो.
इश्क की झोपड़ी को समझ लो,
हुस्न की राजधानी न पूछो.
सिर्फ राजा ही पागल नहीं था,
उसकी पागल थी रानी न पूछो.
बोझ बचपन का क्या कोई कम था,
अपनी घायल जवानी न पूछो.
डॉ.सुभाष भदौरिया
waaaaaaah
जवाब देंहटाएंमुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना 21-06-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
कुलदीप ठाकुर...
बहुत बढ़िया ...
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जवाब देंहटाएंडूबना ही मुकद्दर था अपना,
कितना गहरा था पानी न पूछो.
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आने के लिए क्षमा मांगता हूँ .
लाजवाब ग़ज़ल --बधाई ।