ग़ज़ल
पहले पहले चखी थोड़ी कड़वी लगी,
बाद में दर्दे-दिल की दवा बन गयी.
ज़िन्दगी यूँ तो बर्बाद पहले भी थी,
तुझसे बिछुड़े तो फिर ये सज़ा बन गयी.
हमने चाहा जिसे हमने मांगा जिसे,
राह तकते रहे जिसकी हम उम्र भर,
एक पत्थर की मूरत ही थी वो मगर,
पूजते-पूजते फिर ख़ुदा बन
गयी.
ना दवा का असर, ना दुआ
का असर,
उखड़ा उखड़ा रहे दिल तुझे क्या ख़बर,
तेरी चाहत ने ही हमको ज़िन्दा रखा,
याद ही अब तो तेरी नशा बन
गयी.
अपना दिल भी था भूतों का डेरा कोई
इसमें आये मुसाफिर वो ठहरे नहीं,
सच को कह के
हमेशां परेशां रहे,
झूट तो जैसे उसकी अदा बन गयी.
डॉ.
सुभाष भदौरिया गुजरात.ता.22-09-2013
बहुत ही सुंदर गजल..
जवाब देंहटाएंprathamprayaas.blogspot.in-
Vah sir
जवाब देंहटाएंVah sir
जवाब देंहटाएंअपना दिल भी था भूतों का डेरा कोई
जवाब देंहटाएंइसमें आये मुसाफिर वो ठहरे नहीं,
वाह :-)