ग़ज़ल
ग़मों का अब ख़ज़ाना हो गया है.
कहीं उनका ठिकाना हो गया है.
लगी चुभने कलेजे में ये सांसे,
उसे मुश्किल भुलाना हो गया है.
उन्हें फ़ुर्सत कहां ग़ैरों से है अब,
व्यस्तता का बहाना हो गया है.
जुदाई का सबब सब पूछते हैं,
मेरा नज़रें झुकाना हो गया है.
ये कह कर तोड़ डाला दिल हमारा,
तुम्हारा दिल पुराना हो गया है.
वफ़ा कर के मैं तन्हा आज तक हूँ,
ग़ज़ब का ये जमाना हो गया है.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात.ता.23-12-2013
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